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“ढोल गंवार शूद्र पशु नारी में “नारी” शब्द की बात..

 “ढोल गंवार शूद्र पशु नारी में  “नारी” शब्द की बात..



रामचरित मानस के एक प्रसंग को बड़ा विवादों में लाने की कोशिश की जा रही है. वह प्रसंग है -  

ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी

उपरोक्त पंक्ति में क्या सच है ? उनके अर्थ क्या हैं ? इसकी बात करते हैं.


यहाँ केवल “नारी” शब्द की बात करते हैं.

यदि “नारी” को प्रताड़ित करने का ईश्वरीय विधान है तो फिर माता पार्वती, माँ दुर्गा, माता कौशल्या,

माता सुमित्रा, माता कैकई, माता सीता, को क्या सभी पुरुषों ने प्रताड़ित किया अथवा उनका निरादर किया गया ? या फिर उनका निरादर आज भी होता है ?

पहली बात तो “ताड़ना” और “प्रताड़ना” शब्द अलग – अलग हैं.

अयोध्या में निम्न दो शब्द आज भी प्रयोग किये जाते हैं –

“ताड़ना” / “ताड़ो” अर्थ है : देखना / निगाह रखना / ध्यान देना

“बिंदो”/”बिंदना” अर्थ है : देखना / निगाह रखना / ध्यान देना.

यदि आज भी आप अयोध्या के किसी पुराने रहने वाले व्यक्ति से पूछें तो वह व्यक्ति इसके बारे में अवश्य जानता होगा.

ठीक इसी प्रकार से बुंदलेखंड में जहाँ के गोस्वामी तुलसीदास जी थे, जहाँ उन्होंने श्री राम चरित मांस की रचना की थी वहां ताड़ने का अर्थ है देखभाल करना और ताडने का एक अर्थ शिक्षा देना भी होता है.

जो लोग जानबूझकर श्री रामचरित मानस के रचनाकार श्री गोस्वामी तुलसीदास एवं प्रभु श्री राम के खिलाफ बुरा भला कह रहे हैं उनपर रामचरित मानस का ही एक प्रसंग ठीक बैठता है -

जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखि तिन्ह तैसी.

जै श्री राम.


#dholgavarshoodrpashunaari

#raamcharitmaans

#zerosegoldmedalist


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