Skip to main content

फारुख अब्दुल्ला द्वारा 'मानवता' शब्द का अपनी सुविधानुसार प्रयोग



".....‘फारुख अब्दुल्ला’ ने काश अपने पाकिस्तानी साथियों को तब भी ‘मानवता के धर्म’ के पालन की सलाह दी होती, जब पाकिस्तानी सरकार अपने देश में पिछले कई दशकों से बसे हुए ‘अफगानों’ को वापस उनके मूल देश अफगानिस्तान भेज रही थी ...."



एक समय भारत के जम्मू कश्मीर क्षेत्र में अलगाववाद के प्रखर पैरोकार और नेतृत्व कर्ता रहे जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ‘फारुख अब्दुल्ला’ ने हाल ही में एक बयान दिया है, जो उनके जहरीले विचारों की सच्चाई को उजागर करता है, अतः यहाँ उनके विचारों का विश्लेषण करना आवश्यक हो रहा है.

‘फारुख अब्दुल्ला’ को इस बात से बड़ी पीड़ा हुई है, कि ‘पहलगाम’ में हुए कट्टरपंथी आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों को उनके देश पाकिस्तान वापस भेजने का जो फैसला लिया है वह गलत है. उनके अनुसार भारत सरकार का यह फैसला ‘अमानवीय’ है.

उन्होंने बाकायदा अपने बयान में कहा है कि भारत में रह रहे पाकिस्तानियों की पहचान करके उन्हें भारत से बाहर निकलना ‘मानवता’ के विरुद्ध है. यदि अब्दुल्ला के पूर्व के कर्मों को देखा जाए तो यह आसानी से समझा जा सकता है कि यदि उनका बस चले तो वे भारत सरकार पर दबाव बनाकर पाकिस्तानियों के साथ – साथ भारत में अवैध रूप से रह रहे सभी बांग्लादेशियों व रोहिंगियाओं को आलीशान घर, बड़ी – बड़ी जमीनें, सरकारी नौकरियां और विभिन्न प्रकार के बीमा कवर दिलाकर उन्हें यहाँ हमेशा के लिए बसा दें.

वे भारत में पाकिस्तानियों को तब बसाना चाह रहे हैं, जब भारत विरोधी एजेंडा चलाने वाले वे, और उनके जैसे लोग, देश और दुनिया को यह बताते नहीं थकते, कि भारत में मुसलमान असुरक्षित हैं.

                                                   
यदि इनकी इस बात को एक क्षण के लिए मान भी लिया जाए कि भारत में मुसलमान असुरक्षित हैं, तो वे और उनके बहुत से वैचारिक समर्थक पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार से अधिक से अधिक मुसलमानों को भारत में लाकर उन्हें क्यों असुरक्षा और मुसीबत में डालने का प्रयास कर रहे हैं ?

कायदे में तो उन्हें भारत में असुरक्षित महसूस करने वाले मुसलमानों को भारत से बाहर जाकर बसने का आग्रह करना चाहिए, साथ ही उन्हें अपने विदेशी मुसलमान साथियों को भी यह सुझाव देना चाहिए कि, चूंकि भारत मुसलमानों के लिए सुरक्षित देश नहीं है, इसलिए कृपया वे इस देश में तो कतई न आयें.

एक ओर तो ये और इनके जैसी सोच के लोग, भारत को मुसलमानों के लिए असुरक्षित बताते नहीं थकते, वहीं दूसरी ओर ये लोग बाकी के कुछ देशों से बड़ी संख्या में मुसलमानों को यहाँ आमंत्रित करके उन्हें बसाने में भी कोई कोर कसर भी नहीं छोड़ रहे हैं.

यह एक सामान्य सी स्थिति होती है, कि यदि कोई भी व्यक्ति, किसी स्थान पर असुरक्षित महसूस करता है तो वह उस स्थान से दूरी बनाने का प्रयास करता है. यदि उसके पास उससे बेहतर अवसर और संसाधन मौजूद हों तो वह उस स्थान पर तो कतई रहना पसंद नहीं कर सकता.
    

जो लोग भारत को मुसलमानों के लिए असुरक्षित देश बताते नहीं थकते, उनके लिए सुरक्षित विकल्प के तौर पर पहले ही दो देश धर्म के आधार पर भारत से कट कर बन चुके हैं – पाकिस्तान और बांग्लादेश; जहाँ मात्र मुस्लिम शासन है और वे देश मुस्लिम बाहुल्य भी हैं.

परन्तु यहाँ मामला मुसलमानों की असुरक्षा का तो कतई नहीं है.

यहाँ मामला है ‘फारुख’ जैसे लोगों की असलियत और इनकी चालों को समझने का है, जिसके तहत वे ऊपर से कुछ और प्रदर्शित करते हैं, लेकिन उनके भीतर कुछ और ही चल रहा होता है; जो भारत के लिए अथवा किसी भी सभ्य समाज के लिए खतरनाक ही है.

ऐसे लोग ‘मानवता’ और ‘भाईचारे’ नाम के शब्दों का इस्तेमाल मात्र साधारण लोगों को भ्रमित करने के उद्देश्य से समय – समय पर अपनी सुविधा के अनुसार करते रहते हैं.

उनका और उनके समान विचारधारा के लोगों का दर्द तो बहुत गहरा है, और वे बड़े गहरे सदमें में भी हैं; क्योंकि उन्हें यह पक्का पता है कि भारत जल्द ही उनके परम प्रिय पाकिस्तान के साथ बहुत बुरा करने वाला है, जिसकी शुरुआत भी भारत सरकार द्वारा की जा चुकी है.

इस कारण उनकी हताशा, निराशा और हृदय की पीड़ा उनके बयानों के द्वारा परिलक्षित भी होने लग गई है. यह उसी प्रकार से है, जैसा कुछ दिनों पूर्व महबूबा मुफ़्ती के साथ हुआ था; जब वे हमास को लेकर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कर रही थीं और बेतुकी दलीलें दे रही थीं.

ऐसे राजनेताओं के क्रियाकलापों से इनके विचारों और कृत्यों में विरोधाभास स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.

इसका एक तरोताजा उदाहरण है ‘CAA’ (नागरिकता संशोधन अधिनियम / कानून) का विरोध.
  
CAA के द्वारा यह प्रावधान किया गया है, कि भारत के आसपास के कुछ ऐसे देशों के उन “गैर मुस्लिम” नागरिकों को भारत की नागरिकता दी जा सकती है, जो उन देशों में धार्मिक आधार प्रताड़ित हो रहे हैं, और वे वहां अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.

CAA कानून के विरुद्ध इन जैसे विचारधारा के राजनेताओं की एक बड़ी विच्रित्र दलील यह थी, कि भारत की जनसंख्या वैसे ही बहुत अधिक है, जिसके कारण भारत के संसाधनों पर पहले से ही बड़ा दबाव है. ऐसे में यदि भारत, बाहरी देशों से और भी लोगों को अपने यहाँ की नागरिकता देता है, तो भारत के संसाधनों पर और बोझ बढ़ेगा, जिससे यहाँ पर पहले से निवास करने वाले नागरिकों के हित नकारात्मक रूप से प्रभावित होंगे. चूंकि उन ‘चंद लोगों’ के यहाँ आ जाने से भारत के मौजूदा संसाधनों का उनमें भी बंटवारा होगा, इस कारण भारत के वर्तमान निवासियों के लिए संसाधनों की और भी कमी हो सकती है.
 

परन्तु आज वे लोग भारत में रह रहे करोड़ों पाकिस्तानियों, बांग्लादेशियों और रोहिंगियाओं (जो हमारे दुश्मन देश के नागरिक हैं और भारत एवं इसकी संस्कृति के विरोध से भरे हुए हैं) को बाहर करके उनके मूल देश भेजने का विरोध कर रहे हैं. और इस बार उनकी दलील यह है, कि यह ‘मानवता’ के विरुद्ध है.

ऐसे लोगों के अनुसार भारत को ‘मानवता’ दिखाते हुए इन जहरीले लोगों को यहाँ बसाना चाहिए. इन लोगों के अनुसार इन दुश्मन देश के जहरीले नागरिकों द्वारा भारत के संसाधनों पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ ही नहीं सकता.

कुल मिलाकर ये अपनी दलीलों के आधार पर यह सिद्ध करना चाहते हैं, कि भारत के संसाधनों पर विपरीत प्रभाव मात्र विदेशी “गैर मुस्लिमों” के आने से ही पड़ सकता है; न कि यहाँ अवैध रूप से रह रहे पाकिस्तानियों, बांग्लादेशियों और रोहिंगियाओं के रहने से.

यदि ‘मानवता’ की ही बात की जाए, तो पाकिस्तानियों और भारत में रहने वाले भारत विरोधी लोगों को चाहिए कि वे क्रमशः अपने नागरिकों और सहयोगियों को स्वयं के प्रयासों से भारत से वापस अपने मूल देश यथाशीघ्र पहुँचने और पहुंचाने में मदद करें. क्योंकि वे उन्हीं के नागरिक हैं अथवा उनके प्रति उनकी अटूट श्रद्धा है.

परन्तु ऐसा कुछ नहीं हो रहा है. जो पाकिस्तान, भारत के खिलाफ पूरी दुनिया को यह बताने का प्रयास करता रहता है कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं है, भारत में मुसलमानों के ऊपर जुर्म हो रहा है, आखिर वह इतना गैर जिम्मेदार कैसे हो सकता है, कि वह अपने देश के मुस्लिम नागरिकों को भारत में बसाने का पूरा प्रयास भी कर रहा है, जहाँ उनके अनुसार वे बहुत असुरक्षित हैं. आखिर कोई देश अपने नागरिकों को ऐसे किसी देश में कैसे बसाने का प्रयास कर सकता है, जो उसके नागरिकों के लिए असुरक्षित हो.
            

ऐसे में ‘मानवता’ की तिलांजलि तो पाकिस्तान और पाकिस्तान परस्त लोग ही दे रहे हैं, कि वे अपने देश के मुस्लिमों को एक ऐसे देशों में भेजने को आतुर रहते हैं जिसे वे उनके लिए सुरक्षित नहीं बताते.

जो लोग अपने देशों में मात्र धार्मिक आधार पर प्रताड़ित हैं यदि उन्हें भारत सरकार अपने देश की नागरिकता दे देती है तो क्या यह मानवता नहीं है ? और यह मानवता के विरुद्ध कैसे हो सकता है कि जो भारत विरोधी एजेंडे के तहत भारत में आकर निवास कर रहे हैं, उन्हें अपने देश से बाहर किया जाए, जिनकी संख्या करोड़ों में है.

यदि इनकी पहली दलील जोकि भारत के संसाधनों पर दबाव से सम्बंधित है, उसपर बात की जाए, तो जो करोड़ों की संख्या में भारत में अवैध रूप से पाकिस्तानी, बांग्लादेशी अथवा रोहिंगिया भारत में निवास कर रहे हैं, जिन्हें पिछले कुछ दशकों से भारत में बसाने का कार्य बड़े सुनियोजित ढंग से किया जा रहा है, क्या वे लोग भारत के संसाधनों का उपयोग और दोहन नहीं कर रहे हैं? क्या उनके द्वारा भारतीय संसाधनों के उपयोग से भारत के अन्य नागरिकों के हिस्से के संसाधनों पर बोझ नहीं बढ़ता? या फिर वे यहाँ के अन्य वैध नागरिकों का हक़ नहीं मार रहे हैं और क्या वे भारत के संसाधनों को किसी खतरनाक परजीवी की भांति नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं ?

फारुख जैसी सोच वाले और संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ से ग्रसित लोगों के अनुसार “गैर मुस्लिम” यदि भारत में आकर बसते हैं, तो वे भारत के संसाधनों पर बोझ बनेंगे; लेकिन यदि इनके विदेशी मुसलमान साथी (जो उनके संभावित समर्थक और वोटर हो सकते हैं) जो भारत अवैध रूप से आकर बसे हुए हैं, वे भारत के संसाधनों को समृद्ध करने में अपना योगदान दे रहे हैं और भारत की उन्नति में अपना सक्रिय व महत्वपूर्ण योगदान भी ददे रहे हैं.

शायद इनके ये पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और रोहिंगिया मुसलमान साथी अपने देशों का पूरा भला कर चुके हैं, और वहां शांति तथा समृधि स्थापित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के बाद, अब वे भारत में शांति और समृद्धि की स्थापना में अपना योगदान देने को आतुर हैं. वे भारतीय समाज की सेवा के उद्देश्य से ही यहाँ आकर बसे हैं और भविष्य में भी इनके जैसे सामाजिक कार्यकर्ता, उन देशों से भारत में आने का निरंतर प्रयास करते रहेंगे.
        
वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यामांर (रोहिंगिया) देशों से अवैध रूप से भारत में आये और बसे हुए मुसलमान, सामान्यतः भारत में रचनात्मक कार्य नहीं कर रहे हैं. बल्कि ये भारत को अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाने और यहाँ के सामाजिक ताने बाने को नष्ट करने के अपने प्राथमिक उद्देश्य की पूर्ति में ही बड़ी तन्मयता से लगे हुए हैं.

भारत के विभिन्न हिस्सों में अराजकता फैलाना ही इनकी यहाँ की सबसे बड़ी उपलब्धि और पहचान भी है.

जहाँ तक ‘मानवता’ का प्रश्न है, तो ‘फारुख अब्दुल्ला’ और उनके विचारों से सहमति जताने वाले लोगों को चाहिए, कि वे ‘मानवता’ नाम के अस्त्र वाली अपनी ये ‘बकवास दलील’ पाकिस्तान को दें, कि पाकिस्तान स्वयं से कम से कम इतनी तो ‘मानवता’ दिखाए, कि वह अपने ही नागरिकों को अपने यहाँ अपने स्वतः के प्रयासों बुला ले, यदि वह ज़रा जिम्मेदार और अपने नागरिकों के लिए संवेदनशील देश है तो.

परन्तु मीडिया की कई रिपोर्ट्स तो यही दिखा और बता रही हैं कि जो पाकिस्तानी नागरिक, भारत से पाकिस्तान वापस भेजे जा रहे हैं, पाकिस्तान उन्हें अपने देश में लेने में आनाकानी कर रहा है; और उसके अपने ही नागरिक जो भारत से वापस पाकिस्तान भेजे जा रहे हैं, वे कई – कई दिनों से अपने देश पाकिस्तान के बॉर्डर के अंदर जाने में भी संघर्ष का सामना कर रहे हैं.

यह तो पाकिस्तान की ‘अमानवीयता’ और अपने ही देश के नागरिकों के प्रति उदासीनता, असंवेदनशीलता और गैर जिम्मेदाराना रवैये का स्पष्ट परिचायक है, कि वह अपने ही लोगों को अपनाने को तैयार नहीं है.

अपने ही देश के लोगों को अपने देश में न लेना, पाकिस्तान और भारत में रह रहे पाकिस्तानी मददगारों और उनके समर्थकों की एक और चाल की ओर इशारा है, कि पाकिस्तान जानबूझकर अपने नागरिकों को भारत में भेजकर उन्हें अंडरग्राउंड और अपर ग्राउंड स्लीपर सेल के रूप में बसाना चाहता है, जिससे उसके ये नागरिक, पाकिस्तान के किसी भी भारत विरोधी अभियान में, भारत के भीतर से ही सक्रिय होकर भारत को नुकसान पहुंचाएं और पाकिस्तान की मदद करें.
 
यहाँ ‘फारूख अब्दुल्ला’ को कायदे में अपने परम मित्र, हितैषी और दिल के सबसे करीबी पाकिस्तानी हुक्मरानों को यह सुझाव देना चाहिए, कि कम से कम वे ‘मानवीय मूल्यों’, संवेदनाओं और अपने नागरिकों के प्रति अपनी जवाबदेही को निभाने के लिए आगे आयें, और अपने देश के नागरिकों को अपने देश में वापस लें, साथ ही अपने साथी देश बांग्लादेश के नागरिकों को भी अपने देश में शरण दे और अपनी नागरिकता भी दे.

‘फारुख अब्दुल्ला’ ने काश अपने पाकिस्तानी साथियों को तब भी ‘मानवता के धर्म’ के पालन की सलाह दी होती, जब पाकिस्तानी सरकार अपने देश में पिछले कई दशकों से बसे हुए ‘अफगानों’ को उनके मूल देश अफगानिस्तान भेज रही थी, जिनकी संख्या कई लाखों में थी (लगभग 10 लाख वापस अफगानिस्तान भेजे जा चुके हैं).

खैर फारूख, महबूबा और इन जैसों के विचारों से सहमत लोग वास्तव में पूरे भारतीय समाज और देश को पुनः गुलामी की जंजीरों में जकड़ना चाहते है.

कश्मीर के ‘पहलगाम’ में हुए आतंकी हमलों में मारे गये लोगों के परिवारजनों के प्रति ‘फारुख’ और इनके विचारों से सहमत राजनेताओं तथा लोगों ने जो अपनी संवेदनाएं दिखाने का प्रयास किया है, वह एक ढकोसला ही दिखता है; क्योंकि इनके ऐसे कार्य इनके विचारों और कृत्यों के इतिहास से मेल नहीं खाते.

इनकी ये संवेदनाएं पीड़ितों के साथ मात्र दिखावे भर के लिए सीमित लगती हैं, जिसका एक निहित स्वार्थ यह भी प्रतीत होता है कि उस हमले के प्रभाव से कहीं कश्मीर के इनके साथियों के टूरिस्म पर आधारित व्यवसाय पर बुरा प्रभाव न पड़ने पाए. ये अपने साथी कश्मीरियों के रोजगार को सुरक्षित करने के उद्देश्य से ही हमले के पीड़ितों के प्रति आज अपनी संवेदनाएं व्यक्त कर रहे हों, इससे इनकार नहीं किया जा सकता.

References - 



 

#FarooqAbdullahonhumanism #farukhabdulla #FarooqAbdullahonPakistan @FarooqAbdullahonPakistan #modi #pakistan #terrorattack #pahalgam @pahalgam #terrorattack @pakistanterror @osamabinladen @osama @donaldtrump @putin @yogi @israel @hamas @mahbooba #mahboobamufti




Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

"डोनाल्ड ट्रंप" की हत्या का प्रयास - कोई साजिश या संयोग ?

नवम्बर – दिसम्बर 2023 में, अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों ने “निखिल गुप्ता” नाम के एक भारतीय नागरिक को इस आरोप में गिरफ्तार कर लिया, कि वह कनाडा में रह रहे खालिस्तानी अलगाववादी नेता `पन्नू’ की ह्त्या की शाजिश रच रहा है. वह भारतीय नागरिक, न तो उनके देश अमेरिका में था, और न ही उस व्यक्ति से अमेरिका के किसी भी नागरिक को खतरा था; फिर भी उसे `पन्नू’ जैसे अलगाववादी व्यक्ति की हत्या की साजिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. `पन्नू’ की कथित रूप से हत्या की साजिश रचने वाला भारतीय नागरिक एवं `पन्नू’ दोनों उनके देश के बाहर थे और दोनों उनके नागरिक भी नहीं हैं.                                                      अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति `डोनाल्ड ट्रंप’ के ऊपर हुए जानलेवा हमले के प्रकरण में , अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों का जैसा आचरण दिखाई दिया, उससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है, कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों को अन्य देशों से जुडी बहुत सारी साजिशों की जानकारी करने में त...

अयोध्या में राम मंदिर बनने से क्या लाभ ?

                                    श्री राम मंदिर   अयोध्या के विकास होने से वाकई में क्या लाभ होगा, इसे समझने के लिए इस लेख के अंत में कुछ चित्रों को देखिये जिससे आपको पता चलेगा कि धार्मिक टूरिज्म बढ़ने से उस क्षेत्र अथवा शहर में कितने बड़े बदलाव होते हैं ।   लेकिन सबसे पहले हम बात करते हैं अयोध्या में बन रहे श्री राम जन्मभूमि मंदिर के विषय में; कि अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण से ऐसे कौन से बड़े बदलाव अयोध्या एवं उसके आसपास के जनपदों में दिखाई दे रहे हैं, जिन्हें उस क्षेत्र का हर व्यक्ति देख और महसूस कर रहा है । 1. जमीनों के मूल्य आसमान छू रहे हैं : आज अयोध्या की स्थिति ऐसी हो गई है कि वहां के जमीनों के दाम उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के जमीनों के दामों से भी अधिक हो गए हैं ।  आज अयोध्या में भारत के लगभग होटल चेन, अपने – अपने होटलों के निर्माण कार्यों में लगे हुए हैं या फिर वे वहां अपने होटल बनाने के लिए प्लान कर रहे हैं ।  हाल ही में टाटा ग्रुप ने अपने तीसर...

"ठेले वाली गिलहरी"। "राम काज" में सहयोग का मनोभाव।।

     अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के उपलक्ष्य में, मैंने भी अपनी कॉलोनी में एक सूक्ष्म पूजन कार्यक्रम करने का मन बनाया ।  मेरे साथ, मेरी ही कॉलोनी के सज्जन व्यक्ति भी पूरे उत्साह से सम्मिलित हुए । तय कार्यक्रम की पूर्व संध्या पर, हम दोनों अगले दिन के कार्यक्रम हेतु प्रसाद की व्यवस्था करने के लिए, बाजार से जरूरी सामान खरीदने गए ।  जब मैं केले खरीदने को एक ठेले वाले दुकानदार के पास गया और उससे बड़ी संख्या में केले मांगे, तो वह समझ गया कि मैं अगले दिन के कार्यक्रम के लिए प्रसाद हेतु इतने अधिक केले मांग रहा हूँ । सारे केले देने के बाद, उसनें "पांच केले" मुझे अलग से दिए, और बोला कि भगवान श्री राम के कार्य हेतु मेरा भी एक छोटा सहयोग ले लीजिये । मैंने उसे ऐसा करने से मना किया और कहा  – तुम अपना नुकसान क्यूँ कर रहे हो ? इसकी कोई आवश्यकता नहीं है । लेकिन वह विनय भाव से मुझसे बोला – “मुझे मना मत करिए साहब, भगवान राम के कार्य के लिए मेरी ओर से भी, मेरा यह छोटा सा सहयोग ले लीजिये, मैं भी उनकी पूजा में भागीदार बनना चाहता हूँ।" मैं चाह कर भ...

पैसों के निवेश हेतु कुछ महत्वपूर्ण सुझाव

भारतीय समाज में आज भी अधिकतर लोगों में धन के निवेश को लेकर अपेक्षित ज्ञान व समझ की कमी है. जिन लोगों के पास धन के नियमित स्रोत हैं, अथवा जिनके पास कहीं से एक मुस्त धन प्राप्त होता है (जैसे रिटायरमेंट के बाद मिला हुआ धन/पैतृक संपत्ति अथवा इन्सुरेंस इत्यादि से प्राप्त हुआ धन) वे अपने धन को सुरक्षित रखते हुए उससे बेहतर लाभ प्राप्त करने हेतु उचित स्थान पर निवेश के मार्ग तलाशते हैं. इस तलाश में उनके सबसे बढे सलाहकार उनके अपने कुछ करीबियों साथी / रिश्तेदार ही होते हैं, और वे उन्हीं की सलाह के अनुसार अपने धन का निवेश करते हैं. बहुत से लोगों के कुछ रिश्तेदार, अथवा करीबी ऐसे भी होते हैं, जो कुछ बीमा कंपनियों में कमीशन एजेंट के रूप में काम कर रहे होते हैं; ऐसे कमीशन एजेंट हमेशा ऐसे ही लोगों की तलाश में रहते हैं, जिनके पास धन के कोई नए स्रोत बने हों अथवा जिन्हें कहीं से बड़ा धन अचानक प्राप्त हुआ हो. उदाहरण के तौर पर - जिसकी नई नौकरी लगी हो, किसी बीमा का पैसा मिला हो, रिटायरमेंट के उपरान्त फंड इत्यादि का पैसा मिला हो अथवा पैतृक संपत्ति से बड़ा धन प्राप्त हुआ हो इत्यादि. ये कमीशन एजेंट्स, ऐसे लोगों...

हिट एंड रन कानून और ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल

हाल ही में, केंद्र सरकार ने “हिट एंड रन” कानून के तहत होने वाली सजा में कुछ परिवर्तन करके, एक नया संशोधित कानून प्रस्तुत किया है. परन्तु इस लेख के लिखे जाने तक (दिनांक 02-01-2023) यह कानून लागू नहीं किया गया है. फिर भी इस नए कानून में दिए गए प्रावधानों के विरोध में, भारत के कई हिस्सों के ट्रक चालकों ने हड़ताल शुरू कर दी है.                                                    इस संशोधित कानून के तहत, यदि कोई वाहन चालक लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए, अपनी गाड़ी द्वारा किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाता है और उसके बाद वह वाहन चालक, पुलिस अथवा सम्बंधित अधिकारियों/संस्थानों को सूचित किये बगैर फरार हो जाता है, तो अब उसे “दस वर्ष तक का कारावास” एवं “7” लाख रूपये तक का जुर्माना” भरना पड़ सकता है. पूर्व के कानून में इस प्रकार की घटना के बाद अधिकतम “दो वर्षो” के कारावास का प्रावधान था. इस मुद्दे पर यह समझना आवश्यक है कि इस प्रकार की किसी दुर्घटना होने पर वाहन चालक, घटना वाली ...

महबूबा मुफ़्ती का 'हमास' प्रेम

                                                    “महबूबा मुफ़्ती” ने ‘अमेरिका’ के ‘लास एन्जलेस’ में, जंगल की आग से हो रहे बड़े पैमाने पर संपत्ति के नुकसान के बहाने, गाजा का मुद्दा उठाया है. “महबूबा मुफ़्ती” के मुताबिक़ ‘गाजा’ में, ‘इजराइल’ की ओर से की जा रही सैन्य कार्यवाही से हो रहे जान माल के नुकसान के पीछे ‘इजराइल’ दोषी है. खैर “महबूबा मुफ़्ती” जैसे लोगों से इसी प्रकार के बयानों की अपेक्षा है. वे भारत के अधिकतर लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने में कभी कोई चूक नहीं करती हैं. उनके ईमानदारी की दाद देनी पड़ेगी, कि वे कभी भी लोगों के बीच भ्रम उत्पन्न करने की कोई गलती नहीं करतीं; जिससे कि लोग किसी क्षण यह महसूस करने लग जायें कि “महबूबा मुफ़्ती” में कोई आत्म परिवर्तन होने लगा है.   “महबूबा” ने कभी भी ‘हमास’ को यह सुझाव देने की जहमत नहीं उठाई, कि वह ‘इजराइल’ के ‘बंधक नागरिकों’ को अपने चंगुल से छोड़ दे; जिससे इजराइल द्वारा की जाने वाली सैन्य कार्यवाही को रोकने का को...

वर्ष 2024 के अमेरिकी चुनाव की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के सन्देश

        कुछ समय पूर्व ही अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव संपन्न हुए. जो लोग इस चुनाव के परिणामों एवं चुनाव के दौरान होने वाली विभिन्न घटनाओं को लेकर जिज्ञासु थे, उनके लिए यह चुनाव बड़ा दिलचस्प रहा. जिन्हें इस बार के चुनाव में दिलचस्पी रही, उन्होंने चुनाव प्रक्रिया के दौरान हुई विभिन्न घटनाओं का अपने – अपने नजरिये से विश्लेषण किया और उसी के अनुरूप निष्कर्ष भी निकाले.   इस चुनाव के अंतिम परिणाम के प्रति मेरे अंदर भी बड़ा उत्साह था. बहुत से लोगों की भाँति मैं यही चाहता था, कि अमेरिका के अगले राष्ट्रपति "डोनाल्ड" ट्रंप ही बनें. और अंततः वे ही अमेरिका के नए राष्ट्रपति के रूप में चुने गए. इस चुनाव के दौरान घटित कुछ घटनाओं ने मुझे बड़ा प्रभावित किया. उनमें से जिन घटनाओं ने मुझे प्रभावित किया, उनमें से प्रमुख घटनाओं का मैं यहाँ उनका जिक्र कर रहा हूँ. कुछ वर्षों पूर्व तक, मैं इस पूर्वाग्रह से ग्रसित था कि “हमारे भारतीय नेताओं एवं यहाँ के सामान्य जन मानस” का चुनावी दृष्टिकोण बड़ा ही सीमित होता है, जबकि विकसित देशों के लोग बड़ा विशाल और उदार दृष्टिकोण रखते हैं. वे अपने ...

"पाकिस्तान और मोहम्मद गोरी" के कृत्यों में समानता - भारत को यह सुअवसर खोना नहीं चाहिये

............भारत विभाजन के बाद से ही हम पाकिस्तान के लगभग हर वार का मात्र तात्कालिक जवाब देकर उसे हर बार छोड़ दिया करते हैं; लेकिन वह अपनी हरकतों पर विराम लगाने को तैयार नहीं है. यह वैसा ही है जैसा मोहम्मद गोरी लगातार पृथ्वीराज चौहान पर हमले करता रहता था, और हर बार पृथ्वीराज चौहान उसे भाग जाने देते थे. परन्तु इसका अंत में क्या परिणाम हुआ यह सभी को पता है.  यदि पृथ्वीराज चौहान, मोहम्मद गोरी के दूसरे हमले पर ही उसका अंत कर दिए होते तो भारत का इतिहास कुछ और ही होता. इसलिए यदि पाकिस्तान को अभी नहीं रोक दिया गया तो भविष्य में भारत को भी पृथ्वीराज जैसा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है; क्योंकि पाकिस्तान मो0 गोरी की भांति भारत पर निरंतर हमले जारी रख रहा है ......

"ऑपरेशन सिन्दूर" की सफलता हेतु मोदी जी और भारत की सुरक्षा में लगे हुए सभी राष्ट्रभक्तों को धन्यवाद

...आज की सैन्य कार्यवाही से भारत ने पाकिस्तान की रक्षा मजबूती का आकलन तो कर ही लिया, परन्तु भारत को इतिहास से सबक लेते हुए यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे शत्रु को बार – बार हरा कर छोड़ देना उचित नहीं होगा; जैसा कि पृथ्वी राज चौहान ने मोहम्मद गोरी के साथ किया था. इसकारण पाकिस्तान को इस हालत में पहुंचा दिया जाए कि उसकी आने वाली कई -कई पीढियां भी कभी भारत के बारे में बुरा सोचने तक की हिम्मत न कर सके...