
.................यदि भारत के कानून व उनपर आधारित नियम सरल, स्पष्ट, भ्रम रहित होंगे और न्यायिक प्रणाली दुरुस्त व जवाबदेह होगी, तो किसी भी कुशल नेता के नेतृत्व में भारत कम समय में ही एक ऐसा स्थान बन जायेगा जो काफी समृद्ध, सुखी और सुरक्षित होगा. सरल व सुगम व्यवस्थाएं यहाँ के साधारण नागरिकों में भी अपने देश के प्रति उनके दायित्वों का अहसास करायेंगी, जिससे वे स्वतः ही अपने देश की उन्नति में अपना योगदान देने को प्रेरित होंगे......
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत कई क्षेत्रों में बड़ी – बड़ी उपलब्धियां हासिल कर रहा है. प्रधानमंत्री मोदी, देश के समग्र विकास के लिए निरंतर अथक प्रयास कर रहे हैं. उनके ऐसे सकारात्मक प्रयास उन्हें एक महान नेता की पहचान दिलाते हैं.
उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि भारत के लोग पिछले 10 वर्षों में बड़े बदलावों का अनुभव कर रहे हैं और देश के बेहतर भविष्य को लेकर आशान्वित भी हैं. देश को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प प्रत्येक भारतवासी के मन में आशा की नई किरण लेकर आया है. देश को समय रहते कैसे विकसित राष्ट्र बनाया जाए, इसपर मोदी सरकार ने देश के नागरिकों से सुझाव भी मांगे हैं, जो एक सकारात्मक कदम है. नागरिकों के सुझाव, सरकार को उचित, प्रभावशाली व व्यावहारिक मार्गदर्शन देने का कार्य कर सकते हैं.
भारत के विकसित राष्ट्र के सपने को साकार करने की राह में कुछ व्यावहारिक चुनौतियाँ हैं, जिनसे पार पाये बिना इस लक्ष्य को प्राप्त करने में बहुत संघर्ष करना पड़ सकता है, और वह संघर्ष अनुत्पादक भी हो सकता है.

भारत पिछले कई दशकों से कुछ नीतिगत समस्याओं से जूझ रहा है. जिसका ही परिणाम है कि भारत आज विकास की उस उंचाई पर नहीं है, जहाँ उसे अपने क्षमताओं के अनुरूप होना चाहिए था.
आधुनिक काल खंड में भारत और चीन की विकास यात्रा की शुरुआत एक साथ ही हुई थी. परन्तु चीन अपने कुशल नेतृत्व से भारत और दुनिया के लगभग सभी देशों से बहुत आगे निकल गया, वहीं भारत अभी भी ऐसी बहुत सी छोटी – मोटी उपलब्धियों के लिए ही संघर्षरत है जिन्हें हासिल करने के लिए साधारण प्रयास ही काफी होते हैं.
भारत के नागरिक ऊर्जावान हैं और उनमें क्षमताओं की कोई कमी नहीं है. इसका एक जीवंत प्रमाण यही है की भारत के ही लोग आज अमेरिका की ‘सिलकन वैली’ में विश्व की सबसे दिग्गज टेक कम्पनियों का नेतृत्व कर रहे हैं.
अमेरिकी टेक कम्पनियां, भारतीय टेक पेशेवरों को काम देने में इस कदर उतावली रहती हैं, कि अमेरिकी पेशेवरों को अपने ही देश में काम मिलने में कठिनाई होने लगी है.
परन्तु ऐसे प्रतिभावान भारतीय नागरिक, अपने ही देश भारत में वैसा कर पाने में असमर्थ दिखते हैं, जैसा वे अमेरिका में रहकर सहज ही कर लेते हैं.
उनकी योग्यताएं व क्षमताएं अपने ही देश में काफी हद तक अनुत्पादक साबित होती हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि भारत में उनके विराट सपनों और उनकी अनंत क्षमताओं के अनुरूप उचित वातावरण का सर्वथा अभाव दिखाई देता है.

जब ऐसे प्रतिभाशाली लोग भारत में प्रगति की राह पर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि उनकी राह पर तो रोड़े बिछे हुए हैं. चंद लोग ही उन रोड़ों से संघर्ष करते हुए, व्यवस्थाओं से समझौता करके जैसे – तैसे अपना काम कर पा रहे हैं; परन्तु बहुत से योग्य व क्षमतावान लोग, इन रोड़ों के जंजाल से त्रस्त आकर हतोत्साहित हो जाते हैं. ऐसे में बहुत से पेशेवर इन परिस्थितियों के सामने अपने आपको को सरेंडर करके अनुत्पादक हो जाते हैं; और कुछ, जिनके पास दृढ़ इच्छाशक्ति व पर्याप्त संसाधन होते हैं, वे किसी ऐसे देश की तलाश करते हैं, जहाँ उन्हें उनकी क्षमताओं के अनुरूप कार्य करने का उचित माहौल मिल सके.
भारत में मौजूद विपरीत परिस्थितियों के सामने सरेंडर कर देने वाले टेक पेशेवरों में योग्यताओं व क्षमताओं की कमी नहीं होती. यदि उन्हें उचित माहौल मिल जाए, तो वे भी देश की प्रगति में अपना बहुमूल्य योगदान देने की पर्याप्त क्षमता रखते हैं.
अभी अमेरिकी राष्ट्रपति “डोनाल्ड ट्रंप” ने ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ की नीति के तहत ‘H-1B’ वीजा की फ़ीस बढ़ा दी है. इस घटनाक्रम के संभावित प्रभावों का आकलन बहुत से आर्थिक व सामाजिक विश्लेषक कर रहे हैं. कोई कह रहा है कि इसका भारत तथा अमेरिका में रहने वाले भारतीय टेक पेशेवरों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, तो कोई कह रहा है कि इससे अमेरिका को नुकसान होगा.
खैर किसको नुकसान होगा और किसे फायदा, यह तो भविष्य ही बताएगा.
परन्तु यहाँ विश्लेषण का असली मुद्दा यह है, कि आखिर क्या कारण है, कि दुनिया की लगभग सभी दिग्गज टेक कंपनियाँ, भारतीय टेक्नोक्रेट्स के दम पर प्रगति कर रही हैं. चाहे वह ‘माइक्रोसॉफ्ट’ हो ‘गूगल’ हो या अन्य भी कई टेक कम्पनियाँ; और भारत के ही टेक्नोक्रेट्स अमेरिका जाकर तरक्की की नित नई ऊँचाइयाँ हासिल कर रहे हैं, वहीं भारत में वे ऐसा करने में कठिनाई महसूस करते हैं.
भारत में भी कुछ टेक कम्पनियां देखने में तो अच्छा काम कर रही हैं, लेकिन उनकी स्थिति वैसी ही दिखाई देती है, जैसे वे स्वयं दूसरों की नौकरी कर रही हों.

भारत की ये टेक कम्पनियाँ, कई कंपनियों अथवा संस्थाओं को अपनी सस्ती टेक सेवाएं बेचकर धनार्जन करती हैं. ये कम्पनियाँ मुख्यतः अपने विदेशी और देशी ग्राहकों के लिए सस्ती दरों मैं सॉफ्टवेयर इत्यादि का निर्माण करने तथा उनके देखरेख (take care) करने तक ही सीमित दिखाई देती हैं. वे अपने तरफ से कुछ ऐसा काम नहीं कर पाई हैं, जिनसे उनकी अपनी कोई विशिष्ट पहचान बन पाए. हो सकता है उनका उद्देश्य उतना ही हो.
यदि सॉफ्टवेर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र की ही बात करें, तो भारत और चीन में नीतिगत स्तर पर स्पष्ट भिन्नता दिखाई देती है. एक ओर जहाँ चीन ने अपने ही देश में बहुत पहले अपना स्वदेशी सोशल मीडिया प्लेटफार्म तैयार कर लिया है, और सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिये अपने देश से बाहर जाने वाले संभावित धन को बचा लिया; वहीं दूसरी ओर भारत ने, जहाँ से सॉफ्टवेर टेक्नोलॉजी के विश्वविख्यात महारथी निकलते हैं, उसने आज तक अपना कोई स्वदेशी सोशल मीडिया प्लेटफार्म विकसित नहीं कर पाया है. यहाँ के नागरिक विदेशी सोशल मीडिया पर निर्भर हैं, जिससे भारत का बहुत सारा पैसा इन सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के जरिये विदेशों को लगातार जा रहा है.
यदि भारत की बड़ी टेक कम्पनियाँ चाहतीं, और सरकारें उन्हें अपेक्षित सहयोग प्रदान करतीं, तो वे भी अपना स्वदेशी सोशल मीडिया प्लेटफार्म तैयार कर सकती थीं. परन्तु अभी तक ऐसा कुछ नहीं हो सका है. इससे तो यही लगता है कि भारतीय टेक कंपनियों को स्वयं की क्षमताओं में भरोसा कम है और वे कोई रिस्क नहीं लेना चाहती. वे उसी काम को करके धनार्जन करने में विश्वास रखती हैं जिसमें रिस्क कम से कम हो. ऐसा इसकारण भी हो सकता है, कि कुछ विशेष प्रकार की नीतिगत खामियों के चलते ऐसी कम्पनियाँ ये कार्य न कर पा रही हों. खैर वजह जो भी हो, परन्तु परिणाम हमारे सामने है, कि जिस क्षमता से भारत लैस है, उस क्षमता का उपयोग वह स्वयं नहीं कर पा रहा है; और उसी क्षमता का प्रयोग करके विदेशी कम्पनियाँ हर वर्ष अरबों डॉलर कमा रही हैं और अपने देश में बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन भी कर रही हैं.
भारत के टेक महारथी, भारत में अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित नहीं कर पाते. जबकि वे ही अमेरिका जाकर बड़े – बड़े कार्य कर देते हैं. इसका एक ताजा उदाहरण है “Perplexity” नाम के ब्राउज़िंग प्लेटफार्म के विकास का. इस प्लेटफार्म के संस्थापक ‘अरविन्द श्रीनिवास’ हैं, जो एक IITian हैं; और अमेरिका जाकर उन्होंने इस ब्राउज़िंग प्लेटफार्म को विकसित किया है. यह कार्य वे भारत में भी कर सकते थे, यदि यहाँ उन जैसे तकनीकी विशेषज्ञों के अनुकूल माहौल होता.
आखिर क्या कारण है कि अमेरिका दशकों से ऐसा गंतव्य बना हुआ है, जहाँ पर विश्व के कोने – कोने के योग्य लोग जाते हैं, और उनमें से अधिकांश लोग बड़े - बड़े प्रतिष्ठित कार्य करते हैं; जिससे वे अपने सपने साकार करते हैं, अपनी पहचान भी बनाते हैं और साथ ही अमेरिका के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते हैं.
जिस H-1B वीजा की चर्चा आज पूरे विश्व में हो रही है, यह उसी वीजा की देन है कि वहां ‘एलन मस्क’ जैसा व्यक्ति पहुंचकर इतनी तरक्की कर सका. एलन मस्क भी मूलतः अमेरिकी नहीं हैं, वे भी बाहर से अमेरिका में जाकर बसे हैं.
कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि अमेरिका आज भी एक ऐसा गंतव्य बना हुआ है, जो योग्य लोगों की कद्र करता है, और उन्हें अपने देश में उचित माहौल प्रदान करके उनकी उत्पादकता का फायदा भी उठाता है.
प्रधानमंत्री मोदी के अथक प्रयासों के बावजूद, भारत आज वो तरक्की नहीं कर पा रहा है, जितनी उसे अब तक कर लेनी चाहिए थी. प्रधानमंत्री के बहुत से प्रयास उतने उत्पादक नहीं हो पाते, जितना उन्हें होना चाहिए. इसका सबसे बड़ा कारण यह है, कि भारत में अधिकांश क्षेत्रों से सम्बंधित नियम – कानून बड़े ही पेंचीदा, अस्पष्ट, व्यवहारिकता से दूर व भ्रामक हैं. इन्हीं नियम कानूनों के कारण हमारी न्याय व्यवस्था भी उतनी उत्पादक नहीं बन पा रही है जितनी उससे अपेक्षा की जाती है.
यहाँ के इन्हीं कानूनों व नियमों की खामियों का फायदा बहुत से जिम्मेदार लोग उठाते हैं, और अपने निजी स्वार्थ वश वे व्यवसायियों व योग्य पेशेवरों की राह में रोड़ा बनकर, उनके उत्पादक कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं.
अधिकतर योग्य व कुशल लोग, नियमों – कानूनों की फालतू के अडचनों व उलझनो से दूर रहने का प्रयास करते हैं; जिससे वे अपने काम और अपनी उत्पादकता पर ध्यान केन्द्रित कर सकें. फिर उन्हें उनके उपयुक्त जो भी स्थान दिखता है, भले ही वह दूसरे देश ही क्यों न हों, यदि वे सक्षम होते हैं, तो वे वहां जाने में नहीं हिचकते.
इसका एक बड़ा प्रमाण यह भी है, कि प्रति वर्ष हजारों की संख्या में अरबपति, भारत की नागरिकता छोड़कर दूसरे देशों में बसने चले जाते हैं. इसके साथ ही काफी योग्य व कुशल लोग भी अमेरिका जैसे देशों में जाकर अपनी प्रतिभा निखारते हैं.
जिस देश के योग्य, कुशल पेशेवर और संपन्न लोग, अपने देश की अव्यवस्थाओं से तंग आकर किसी अन्य बेहतर देश में जाकर काम करने और वहां बस जाने का प्रयास करते रहते हों, ऐसे देश की स्थिति का सहज अनुमान लगाया जा सकता है. बड़ी संख्या में प्रतिभावान लोग तथा धन – समृधि बाहर जाने का दुष्प्रभाव तो उसी देश को भुगतना पड़ता है जहाँ से वे बाहर जा रहे होते हैं.
यह वैसा ही है – जैसे किसी सामान्य शहर में रहने वाले किसी परिवार का कोई सदस्य, जो बड़ा टैलेंटेड हो, खूब अमीर और प्रभावशाली हो, जिसके कारण उसका परिवार समृद्ध जीवन व्यतीत करता हो; यदि वह व्यक्ति अपने उस परिवार से रिश्ता नाता तोड़कर किसी बड़े शहर अथवा विदेश में जाकर बस जाए, तो उस परिवार को संकटों का सामना करना पड़ सकता है. भले ही उस परिवार के सामने कोई विशेष संकट न खड़ा हो, परन्तु यह तो तय है, कि ऐसी स्थिति में उस परिवार को अपनी पूर्व की ही स्थिति को बनाए रखने हेतु काफी संघर्ष करना पड़ेगा.
भारत भी कई दशकों से उसी संघर्ष से गुजर रहा है, क्योंकि यहाँ के प्रतिभावान व संपन्न लोग लगातार भारत छोड़कर दूसरे देशों का रुख कर रहे हैं, वह भी यहाँ की अव्यवस्थाओं के कारण.
भारत में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्तियों को ही यहाँ की सारी समस्याओं की जड़ बाताया जाता है, परन्तु सच्चाई यह है कि यहाँ लगभग 95% भ्रष्टाचार, मात्र नियमों – कानूनों की भ्रामकता, उनकी पेचीदगी और व्यावहारिकता से उनकी दूरी के कारण ही व्याप्त है. जिम्मेदार लोग नियम कानूनों की उन्हीं खामियों का फ़ायदा उठाते हैं और भ्रष्टाचार में लिप्त होकर अव्यवस्थाएं उत्पन्न करते हैं.
भारत के योग्य नागरिक इन्हीं अडचनों के कारण राजनीति से भी दूर रहना चाहते हैं. कायदे में प्रत्येक समाज का नेतृत्व सबसे योग्य व कुशल व्यक्ति के हाथों में होना चाहिए. परन्तु भारत में योग्य व कुशल व्यक्ति राजनीति से हमेशा दूरी बनाकर रखना चाहता है, जिसका कारण ही हमारी प्रतिकूल नीतिगत व्यवस्थाएं हैं.
यदि भारत को समय रहते विकसित देश बनना है, तो भारत को चाहिये कि वह अपने संवैधानिक कानूनों व उनपर आधारित नियमों इत्यादि में इस प्रकार का परिवर्तन करे, जिससे सभी कानून व उनपर आधारित नियम बिलकुल सरल, स्पष्ट, व्यावहारिक व भ्रान्ति रहित हों. इसके साथ ही न्यायिक संरचना में परिवर्तन आवश्यक है. आज न्यायिक प्रक्रिया पुराने व जटिल नियम कानूनों से संचालित होती है, साथ ही उसमें उत्तरदाइत्व का भी घोर अभाव दिखता है; जिसमें व्यापक बदलाव की आवश्यकता है.
यदि भारत के कानून व उनपर आधारित नियम सरल, स्पष्ट, भ्रम रहित होंगे और न्यायिक प्रणाली दुरुस्त व जवाबदेह होगी, तो किसी भी कुशल नेता के नेतृत्व में भारत कम समय में ही एक ऐसा स्थान बन जायेगा जो काफी समृद्ध, सुखी और सुरक्षित होगा. सरल व सुगम व्यवस्थाएं यहाँ के साधारण नागरिकों में भी अपने देश के प्रति उनके दायित्वों का अहसास करायेंगी, जिससे वे स्वतः ही अपने देश की उन्नति में अपना योगदान देने को प्रेरित होंगे.

भारत जैसे उत्साही नागरिकों वाले देश में, यदि नियम कानून सभ्य समाज और योग्य लोगों के अनुकूल होंगे, तो यह तय है कि यहाँ के प्रतिभावान नागरिक भारत में ही रहकर उत्कृष्ट कार्य करेंगे, जिससे भारत का चहुंमुखी विकास होना तय है.
अतः भारत के प्रतिभावान नागरिकों को भारत में ही उचित माहौल किस प्रकार प्रदान किया जाए, आज हमारे नेतृत्व का ध्यान इस पर केन्द्रित होना चाहिए. क्योंकि यह कार्य अमेरिका दशकों से करता आया है और हाल के कुछ दशकों में चीन ने ऐसा करके दिखाया है.
अतः H-1B वीजा के नियमों में परिवर्तन, भारत के लिए एक बड़ा अवसर है, कि हम अपने देश के प्रतिभाशाली नागरिकों के लिए भारत में ही अनुकूल माहौल तैयार करें, जिससे वे अमेरिका जाने के बजाए भारत में ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करें. यदि ऐसा होता है तो भारत के टेक्नोक्रेट्स में इतनी क्षमता है, कि वे भारत में ही माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और फेसबुक से भी बड़े प्रभावशाली प्लेटफार्म तैयार कर दें; साथ ही वे अपनी योग्यता के योगदान से विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने की राह भी आसान बना दें.
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