‘डोनाल्ड ट्रम्प’ जबसे अमेरिका में राष्ट्रपति के रूप में पुनः सत्ता में आये हैं, तब से वे रह – रहकर कुछ न कुछ ऐसा काम करते ही रह रहे हैं, जो उनके वास्तविक व्यक्तित्व से भिन्न दिखाई पड़ता है. अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल में उनका व्यक्तित्व भिन्न था, और अब उनका व्यक्तित्व काफी बदला हुआ दिखाई दे रहा है.
राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले कार्यकाल में ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ की छवि एक सुधारवादी, शांति स्थापित करने वाली व विकसित विश्व के निर्माण वाली रही; जो उनके क्रियाकलापों में स्पष्ट होती थी.
परन्तु इस बार उनके क्रियाकलाप रहस्यमयी हैं जो बहुतों के समझ से परे है. अब वे दुनिया के विभिन्न देशों के साथ ऐसी पैतरे बाजी कर रहे हैं, जिससे दुनिया ‘अमेरिका’ की ताकत का लोहा माने, साथ ही कई देशों की आर्थिक तरक्की भी बाधित हो. खैर यह अमेरिका की स्टेट पॉलिसी रही है कि मात्र अमेरिका ही विश्व का सिरमौर बना रहे. उसके सामने जो भी देश प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ता दिखने लगे, उसे पीछे करना उसका मकसद रहा है चाहे उसके लिए किसी भी प्रकार का जायज अथवा नाजायज हथकंडा अपनाना पड़े.
वे अब वे भी उसी मार्ग पर चलने लग गए हैं, जिसे अमेरिका के अधिकांश पूर्व राष्ट्रपतियों ने अपनाया हुआ था.
खैर वे सभी तो शुद्ध रूप से ‘राजनेता’ थे, परन्तु ‘ट्रम्प’ इसलिए उस राष्ट्रपतियों से भिन्न दिखते थे, क्योंकि वे शुद्ध रूप से 'राजनेता' न होकर एक 'व्यवसायी' हैं. परन्तु अब ऐसा लगता है कि वे कुछ ऐसे लोगों से कोचिंग ले रहे हैं, जो उन्हें एक कुशल राजनेता के रूप में स्थापित करने की कला में पारंगत हैं.
उन्होंने 14 से 15 जुलाई 2025 के बीच ‘रूस’ की राजधानी ‘मॉस्को’ पर हमले के लिए ‘यूक्रेन’ के नमूने राष्ट्रपति ‘जेलेंस्की’ को उकसाया है. उन्होंने कहा कि “पुतिन को दर्द का अहसास होना चाहिए”.
लेकिन शायद वे इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं, कि वे स्वयं ही ऐसे काम करते ही जा रहे हैं जिससे विश्व के कई ऐसे देश दर्द झेल रहे हैं जो अमेरिका के बड़े करीबी माने जाते हैं. उदाहरण के तौर पर यूरोप के कुछ देश.
इस बात में कोई शक नहीं कि अमेरिका का संविधान और उसके कानून बड़े स्पष्ट हैं, और उसकी न्यायिक प्रक्रिया बेहतर है. इसके साथ ही वहां के अधिकतर राष्ट्रपतियों ने भी बड़ी कुशलता से अमेरिका को लगभग हर क्षेत्र में अग्रणी बनाने का काम भी किया है. इसके साथ ही उन्होंने अन्य देशों को नुकसान पहुंचाने का कार्य भी बड़ी चालाकी और कुशलता से किया है, जिसका उद्देश्य यही रहा, कि विश्व का कोई भी देश ‘अमेरिका’ की बराबरी न कर सके. परन्तु ‘अमेरिका’ को चाहिए, कि कम से कम अब तो वह ऐसे कार्यों को करने से बचे, जिससे यह साबित होता हो, कि अमेरिका जो अपने को सभ्य लोगों का देश मानता है, वह अंदर से अभी भी ठीक वैसा ही है, जैसा कि दुनिया के अधिकतर सामान्य लोग; जो असुरक्षा महसूस होने पर, सामान्य जानवरों जैसा व्यवहार करते हैं.
खैर ‘अमेरिका’ का इतिहास ऐसे तमाम उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिसमें ‘अमेरिकियों’ ने स्वयं को असुरक्षित महसूस होने पर जानवरों वाले क्रूर व्यवहार किए हैं.
‘डोनाल्ड ट्रम्प’ का यह कहना कि ‘मॉस्को’ पर हमला करके ‘पुतिन’ को दर्द का अहसास कराना आवश्यक है, इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं. पहला यह, कि ‘ट्रम्प’ इस बात को लेकर परेशान हैं कि उनके मन मुताबिक ‘रूस – यूक्रेन’ युद्ध रुक नहीं रहा है; और दूसरा यह, कि ‘ट्रम्प’ ऐसे लोगों के प्रभाव में आ गए हैं, जो अमेरिका को दुनिया से आगे रखने के लिए इस नीति पर अधिक भरोसा करते हैं, कि स्वयं को दूसरों से आगे रखने का सबसे बेहतर तरीका यह है, कि दूसरों को आगे बढ़ने ही न दिया जाए.
अब इसमें कौन सा कारण सत्य है, इस बारे में कहना मुश्किल है.
‘डोनाल्ड ट्रम्प’ एक सफल एवं कुशल व्यवसायी हैं, परन्तु उनसे कई गुना अधिक सफल व कुशल व्यवसायी उनके पूर्व के सहयोगी व ‘टेक्नोक्रेट’ – ‘एलन मस्क’ हैं.
‘ट्रम्प’ के साथ एक अच्छा खासा समय बिताने के बाद ‘एलन मस्क’ को जब ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ समझ में नहीं आये, तो उन्होंने ‘ट्रम्प’ का साथ छोड़ दिया.
‘डोनाल्ड ट्रम्प’ के राजनीतिक, कारोबारी एवं व्यक्तिगत रवैये को यदि देखा जाए, तो ऐसा मालूम पड़ता है कि वे व्यापार में वे मात्र इसकारण सफल रहे हैं, क्योंकि वे “येन केन प्रकारेण" अपना उल्लू सीध करने की कला जानते हैं, और उसमें वे माहिर भी हैं.
अपने इस बार के चुनाव को जीतने के लिए उन्हें ‘धन’ और ‘तकनीकी’ सहयोग के लिए ‘एलन मस्क’ का साथ आवश्यक लग रहा था. ‘एलन मस्क’ का सहयोग हासिल करने के लिए उन्होंने, उन्हें परोक्ष रूप से डराने की कोशिशें शुरू कर दी.
उन्होंने अपनी चुनावी सभाओं में इलेक्ट्रिक वाहनों पर कटाक्ष करना शुरू किया, जिसका उद्देश्य था कि अपने व्यापारिक हितों की सुरक्षा के लिए ‘एलन मस्क’ मजबूर होकर ‘ट्रम्प’ का साथ देने सामने आयें.
इस चुनाव में ‘जो बाईडेन’ के विरुद्ध अमेरिका के नागरिकों में पहले से ही माहौल बना था. ऐसे में ‘एलन मस्क’ को इस बात का आभास हो गया था, कि ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ की सत्ता में वापसी तय है.
और यदि ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ सत्ता में आ गए, तो हो सकता है कि वे उनके कारोबार को नुकसान पहुंचाने का भरपूर प्रयास करें. इसलिए ‘एलन मस्क’, ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ के पक्ष में मजबूरी में आ गए, और उन्होंने ‘तन’, ‘धन’ और ‘तकनीकी’ की मदद से ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ के लिए समर्थन जुटाने का भरपूर प्रयास किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ की बम्पर जीत हुई.
परन्तु ‘ट्रम्प’ का, अपना उल्लू सीधा करने का "येन केन प्रकारेण" वाला रवैया बना रहा; जिससे एक असाधारण प्रतिभा के धनी ‘एलन मस्क’ उनसे अलग हो गये.
आखिर जो व्यक्ति अपनी स्वयं की प्रतिभा से, बिना किसी गैर कानूनी काम किए, सफलता की नित नई ऊँचाइयाँ हासिल कर रहा हो, वह किसी ऐसे व्यक्ति के साथ तो कदापि नहीं रह सकता, जो अपनी सफलता के लिए कुटिलता का मार्ग अपनाने में संकोच न करता हो.
आखिर ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ और ‘एलन मस्क’ आज अलग हैं, जिसका एक मात्र कारण ‘ट्रम्प’ का विचित्र रवैया रहा.
‘डोनाल्ड ट्रम्प’ जो अपने पहले कार्यकाल में जिस आतंकवाद को दुनिया से मिटा देने की बात करते थे, आज वे उसी आतंकवाद को पोषित करने का काम करने में लगे हैं. यह वही रणनीति हैं, जो अमेरिका के अन्य अधिकतर राष्ट्रपतियों की रणनीति का अभिन्न हिस्सा रही है. शायद ‘अमेरिका’ में एक प्रभावशाली वर्ग ऐसा है, जो वहां के नेताओं को इसी रणनीति पर चलने की सलाह देता है, और वह नेताओं को यह भरोसा दिलाता है, कि यही एक ऐसी प्रभावी रणनीति है, जिससे ‘अमेरिका’ विश्व में सर्वश्रेष्ठ बना रह सकता है.
पिछले कई दशकों से ‘अमेरिका’ को विश्व का नम्बर वन देश बने रहने के लिए, वहां के ‘थिंक टैंक’ और ‘राजनेता’ इस रणनीति को अपनाते रहे हैं, कि जब स्वयं आगे न बढ़ पाओ, तो दूसरों को खींचकर अपने से पीछे कर दो. अथवा यदि दूसरों से आगे बढ़ना है, तो अपना विकास तो करने का प्रयास करते रहो, लेकिन दूसरों के विकास की गतिविधियों पर भी ध्यान बनाए रखो, और उनमें बाधा उत्पन्न करने का निरंतर प्रयास करते रहो.
इसी रणनीति के तहत ‘अमेरिका’ ने विश्व के कई देशों में आतंकवादी संगठनों को पैदा किया, उनको पोषित किया, दुनिया के कई देशों को आपस में लड़ाया भिड़ाया, जापान पर परमाणु बम गिराया, रूस को नुकसान पहुंचाया और इसके अलावा भी उसने अनगिनत कुकर्म किए.
‘रूस’, ‘अमेरिका’ की बराबरी न करने पाए, इसलिए उसने ‘रूस’ को यथासंभव नुकसान पहुंचाने में कोई कोर कर कसर नहीं छोड़ी और वह आज भी वह अपने सहयोगियों के साथ मिलकर अपने उसी एजेंडे पर निरंतर कार्य कर रहा है. खैर ऐसी उम्मीद ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ से नहीं थी, परन्तु अब वे भी वही काम करने लग गए हैं.
राष्ट्रपति के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ ने जब ‘यूक्रेन’ और ‘रूस’ का युद्ध खत्म करने का प्रयास किया, तो उन्हें इस बात का स्पष्ट आभास था कि इस युद्ध की जड़ ‘जेलेंसकी’ ही हैं. इसीलिए ‘ट्रम्प’ ने ‘जेलेंस्की’ को सरे आम सच का आईना दिखा कर जलील भी किया. परन्तु अब वही ‘ट्रम्प’, ‘पुतिन’ को दर्द देने की बात कर रहे हैं और ढाल बना रहे हैं एक ऐसे नमूने को, जिसने अपने अहंकार के लिए अपने पूरे देश का बंटाधार कर दिया और अपने नागरिकों को शरणार्थियों के रूप में दूसरे देशों में रहने को विवश कर दिया है.
यदि ‘ट्रम्प’ यह सोच रहे हैं कि ‘पुतिन’ के नेतृत्व वाले ‘रूस’ को नुकसान पहुंचाकर वे इस युद्ध को ख़त्म कर सकते हैं, तो वे अपने खुद के ‘भ्रमित दिमाग’ और अपने ‘कुटिल शागिर्दों’ के चक्कर में ‘पुतिन’ की ताकत को पहचान नहीं पा रहे हैं. क्योंकि यदि अब ‘मॉस्को’ को नुकसान पहुंचाने का प्रयास ‘अमेरिका’ करता है, तो इसका बड़ा घातक असर ‘अमेरिका’ पर पड़ना तय है और वह इतना ‘घातक’ होगा (और वह होना भी चाहिए), जिसका दर्द ‘अमेरिका’ को बहुत अधिक होगा.
आज दुनिया कई ‘ध्रुवों’ में बंटी हुई है; और ‘सूचना क्रान्ति’ के इस दौर में, दुनिया के अधिकांश हिस्सों के लोग ‘अमेरिका’ की कुटिलता की कहानियाँ पढ़ और सुन रहे हैं; जिससे विश्व के अधिकांश देश, अब ‘अमेरिका’ पर भरोसा करने को तो कतई तैयार नहीं हैं.
इसलिए यदि ‘अमेरिका’ को अपना स्वरूप और स्थिति ठीक रखनी है, तो उसे ‘जेलेंस्की’ जैसे नमूनों के लिए अपने देश को किसी खतरे में डालने से बचने का प्रयास करना चाहिए.
क्योंकि इतिहास बताता है, कि ऐसे नमूनों के चक्कर में बड़े – बड़े साम्राज्य नष्ट हो चुके हैं.
“भारत की भूमि पर, ‘श्री राम’ के दौर में ‘सूपनखा’ ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए और अपने अहंकार को शांत करने के लिए, अपने परम शक्तिशाली भाइयों को झूठी कहानियाँ सुनाकर, उन्हें ‘श्री राम जी’ के विरुद्ध भड़का दिया. फिर एक साधारण से वनवासी लगने वाले वीरों (श्री राम और लक्ष्मण जी) ने धरती के उस समय के सबसे बड़े सूरमा – ‘रावण’ को उसके सभी विध्वंसक साथियों के साथ समाप्त कर दिया; और उस समय धरती पर सबसे समृद्ध ‘सोने’ की ‘लंका’ बर्बाद हो गई.”
यदि रामायण काल की तुलना आज ‘नाटो’, ‘रूस’ और ‘जेलेंसकी’ से करें; तो आज ‘जेलेंस्की’, सूपनखा की भूमिका में हैं, जो अपने जिद और अहंकार में चूर होकर हर हाल में ‘पुतिन’ को नष्ट करना चाहता है, और उसका साथ अमेरिका और सहयोगी ‘नाटो’ के नमूने देश दे रहे हैं; जो ‘रावण’ और उसके साथियों की भूमिका में हैं.
परन्तु यह सृष्टि का नियम है, कि जीत हमेशा उनकी होती है जो ‘सत्य’ पर चलते हैं और जिनके पास ‘अध्यात्मिक शक्तियां’ होती हैं. वहीं कुटिलता का अंत पराजय के रूप में होता है.
इसलिए यदि ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ अमेरिका को आगे ले जाना चाहते हैं, तो उन्हें चाहिए कि वे अपने सर्वांगीण विकास पर ध्यान दें, न कि किसी बेवकूफ के चक्कर में आ कर अमेरिका को ही किसी बड़े खतरे में डाल दें.
पहलगाम आतंकी हमले में ‘डोनाल्ड ट्रम्प’ की संदेहास्पद भूमिका :
‘पहलगाम’ की आतंकी घटना के परिदृश्य को यदि देखा जाए तो इसमें अमेरिका की भूमिका संदेहास्पद प्रतीत होती है.
‘पहलगाम’ में आतंकी हमला तब होता है, जब भारत के प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र मोदी’, ‘रूस’ के ‘स्वतंत्रता समारोह’ में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने के लिए जाने वाले होते हैं.
इस दौरान इस बात की पूरी संभावना थी, कि ‘भारत’ और ‘रूस’ के शीर्ष नेता, ‘नाटो’ प्रायोजित युद्ध की बात करें और एक दूसरे की मदद के लिए किसी ठोस निर्णय पर पहुँचें. बस उनकी इसी वार्ता और ‘भारत – रूस’ गठजोड़ को रोकने अथवा बाधित करने के लिए ‘पहलगाम’ में आतंकी हमला कराया गया.
इस आतंकी घटना के बाद स्वाभाविक रूप से ‘नरेंद्र मोदी’ का ‘रूस’ दौरा रद्द हो जाता है. और फिर ‘भारत – पाकिस्तान’ में ‘लिमिटेड युद्ध’ होता है, और इस युद्ध में हमेशा की तरह पाकिस्तान तो मुंह की खाता ही है, परन्तु उसके साथ ही अमेरिका और चीन के हथियारों की भी विश्व स्तर पर किरकिरी हो जाती है.
इसके तुरन्त बाद ‘डोनाल्ड ट्रम्प’, पाकिस्तान में आतंकियों की फैक्ट्री के मालिक, जो वहां का सेना प्रमुख है, उसे ‘अमेरिका’ में दावत पर बुलाते हैं और उसे सम्मान देते हैं. शायद वे पहलगाम में आतंकवादी हमले के बदले उसे इनाम देने का प्रयास करते हैं. ‘डोनाल्ड ट्रंप’ पाकिस्तान को कई प्रकार के फंड भी उपलब्ध कराते हैं, जिससे वह अपनी आतंक की फैक्ट्री का और विस्तार कर सके.
इन सब घटनाओं को देखकर लगता है कि ‘पहलगाम’ हमला, अमेरिका की कुटिल साजिश हो सकती है; जिसका उद्देश्य था ‘प्रधानमंत्री मोदी’ को ‘रूस’ जाने से रोकना और ‘भारत – पाकिस्तान’ में युद्ध कराकर, भारत को आर्थिक रूप से कमजोर करना.
वर्तमान में ‘भारत’ अपने सदाबहार मित्र ‘रूस’ से बड़ी मात्रा में तेल का आयात कर रहा है, जिससे ‘रूस’ को आवश्यकतानुसार धन प्राप्त हो रहा है; जिसका उपयोग वह ‘नाटो’ प्रायोजित युद्ध में कर रहा है. यही बात ‘अमेरिका’ और उसके ‘नाटो’ के चेलों को खटक रही है.
उनका यह उद्देश्य था कि किसी प्रकार से ‘भारत’ यदि ‘रूस’ से उसका तेल खरीदना बंद कर दे, तो ‘रूस’ की आर्थिक स्थिति कमजोर ही जायेगी, जिससे उसे नुकसान पहुंचाना सरल हो जाएगा.
शायद इसीलिए “ऑपरेशन सिन्दूर” के अस्थाई विराम के बाद ‘प्रधानमंत्री मोदी’ ने कहा था कि भारत को विकसित देश बनने से कोई रोक नहीं सकता. क्योंकि उन्हें शायद ‘अमेरिका’ और उसके ‘गुर्गों’ की इस साजिश और कारस्तानी का पता चल चुका था; कि ये सब मिलकर ‘रूस’ और ‘भारत’ को लक्ष्य बना कर, दोनों देशों की आर्थिक और सैन्य ताकत को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं.
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