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अपने दुश्मनों से निपटने में इजराइल व भारत का नजरिया – इतिहास और वर्तमान के चंद उदाहरण


इजराइल अपने दुश्मनों का पहचानता भी है और अपनी सुरक्षा की प्रतिबद्धता को लेकर पर्याप्त सक्रिय भी रहता है। अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण ही इजराइल ने शुक्रवार 13, जून 2025 को ईरान के उन स्थानों पर सबसे पहले मिसाइलों से हमला किया, जहाँ ईरान परमाणु हथियार बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा था। ऐसा माना जा रहा था कि यदि ईरान को दो हफ्ते का समय और मिल गया होता, तो वह परमाणु हथियार तैयार कर लेता। लेकिन इजराइल ने ऐसा नहीं होने दिया।

अमेरिका भी ईरान के परमाणु कार्यक्रमों के खिलाफ था और उसके विरुद्ध कार्यवाही की चेतावनी भी देता रहा; लेकिन इजराइल ने त्वरित कार्यवाही करते हुए अपने नजदीकी दुश्मन को समय रहते ही पंगु कर दिया।

इजराइल एक ऐसा देश है जो चारों ओर से अपने दुश्मनों से घिरा है, लेकिन अपने दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए वह यह व्यावहारिक बात अच्छे से जानता है, कि वह तभी तक सुरक्षित रह सकता है; जब तक वह स्वतः के प्रयासों से अपने को पर्याप्त रूप से मजबूत रखेगा। उसे दूसरों की मदद भी तभी प्राप्त हो सकेगी जब वह स्वयं में सक्षम होगा।


इस व्यावहारिक समझ के कारण इजराइल स्वयं का निरंतर सर्वांगीण विकास करता गया और उसने कम समय में ही तकनीकी क्षेत्र में महारत हासिल कर ली।

एक ओर उसने उन्नत तकनीकी का निर्यात करके अपनी जनता के आय व उनके जीवन स्तर में बढ़ोतरी की, वहीं दूसरी ओर उसने अपनी सैन्य ताकत को इतना मजबूत कर लिया कि चारों ओर से दुश्मनों से घिरा होने के बावजूद, उसके किसी भी दुश्मन में इतनी शक्ति नहीं रह गई है, कि वे इजराइल पर सीधा हमला करने की सोचें भी। इजराइल के विरुद्ध मात्र वो ही लोग सोचते व काम करते हैं, जो हमेशा अपनी मौत को अपनी हथेली में लिए पागलों अथवा विक्षिप्तों की भांति व्यवहार करते हैं।

अपने स्वयं के प्रयासों से आत्मनिर्भर होने के कारण ही अमेरिका और यूरोप जैसे देश भी इजराइल की मदद करने को हमेशा मजबूर रहते हैं।

इजराइल की तकनीकी क्षमता का लोहा इस बात से माना जा सकता है कि वह अपनी प्रति व्यक्ति जनसंख्या के आधार पर, अमेरिका और यूरोप के बराबर नोबेल पुरस्कारों को हासिल करता रहा है।
  

इजराइल का ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले के पीछे मात्र यही उद्देश्य था, कि ईरान जैसा धूर्त देश किसी भी सूरत में परमाणु हथियार संपन्न देश न बनने पाए।

ईरान, दुनिया के खतरनाक आतंकी संगठनों को – चाहे वह हमास अथवा हिजबुल्ला हो, हूती विद्रोही हों, अथवा अन्य भी कई खतरनाक संगठन हों; वह उन्हें वह धन, हथियार और अन्य भी कई प्रकार के संसाधनों को मुहैया कराकर विश्व के कई हिस्सों में आतंकवाद व अराजकता फैलाने में सहयोग करता रहता है।

यदि ऐसा देश परमाणु हथियारों से लैस हो जाता है, तो वह इन हथियारों का इस्तेमाल दुनिया के किसी भी शांति प्रिय देश के विरुद्ध कर सकता है, जिससे विश्व शांति के समक्ष एक गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।

यदि अनैतिक व्यक्ति अथवा समाज के हाथ में शक्ति पहुँच जाती है, तो इस बात की पूरी संभावना होती है कि वह अपनी शक्तियों का दुरुपयोग ही अधिक करे। अतः ऐसे लोगों अथवा समाज का शक्ति संपन्न होना शांतिप्रिय देशों, समाजों व लोगों के लिए एक प्रकार का गंभीर व अदृश्य खतरा ही होता है।

इसलिए इजराइल द्वारा ईरान पर किया हमला, न केवल इजराइल की सुरक्षा की दृष्टि से उचित है, बल्कि यह उन सभी देशों एवं समाजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा बढ़ाया गया एक आवश्यक व महत्वपूर्ण कदम है, जो शांतिपूर्ण वातावरण में जीवन यापन करना चाहते हैं।

भारत और इजराइल दोनों ही लोकतांत्रिक देश हैं, और इजराइल में मुस्लिम जनसंख्या भी भारत के समान ही लगभग 20% है। लेकिन वहां के राजनेता, भले ही वे किसी भी पार्टी के क्यों न हों, वे अपने राष्ट्र की सुरक्षा और उसके सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता देते हैं। उसके ठीक उलट भारत में अनेकों ऐसे राजनेता रहे हैं और आज भी मौजूद हैं, जो राष्ट्रीय हितों को दरकिनार करते हुए, अपनी व्यक्तिगत व दलीय महत्वाकांक्षाओं को प्राथमिकता देते हैं और भारत के विरुद्ध जाने को भी तैयार रहते हैं।
  

यदि आजादी के बाद से भारत के कई सबसे प्रभावशाली व शक्ति संपन्न राजनेताओं ने अपने पदों के अनुरूप अपनी जिम्मेदारियों का कुशलता निर्वाह किया होता और अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता पर रखकर दूरदर्शिता का परिचय दिया होता, तो पाकिस्तान कभी परमाणु हथियार संपन्न देश नहीं बन पाता; और भारत, चीन के स्थान पर बहुत पहले ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य भी होता; क्योंकि अमेरिका ने चीन से पहले भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बनने का प्रस्ताव दिया था। परन्तु भारत के तत्कालीन ‘प्रधानमंत्री नेहरू’ के द्वारा न केवल अमेरिका के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया, बल्कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिए चीन की जोर शोर से पैरोकारी भी करके, उसका संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बनने का मार्ग भी प्रशस्त किया। और आज वही चीन, भारत के विरुद्ध हर संभव कार्य करने को आतुर रहता है।

ऐसा भी बताया जाता है कि ‘जवाहरलाल नेहरू’ ने चीन को तिब्बत पर अवैध कब्जा करने में मदद भी की थी।

जिस प्रकार से इजराइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाकर उन्हें लगभग नष्ट ही कर दिया है, यदि यही कार्य भारत ने समय रहते पाकिस्तान के विरुद्ध कर लिया होता, तो भारत को लम्बे समय तक आतंकवाद, घुसपैठ इत्यादि से जंग नहीं लड़नी पड़ रही होती, और न ही कश्मीर कोई विवाद का मुद्दा होता।

‘मोरारजी देसाई’ के समय पाकिस्तान परमाणु हथियारों से लैस होने का प्रयास कर रहा था, और वर्तमान के ईरान की भांति, वह अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा था।
  

उस समय भारत की ओर से पाकिस्तान के विरुद्ध इजराइल की भांति किसी सैन्य कार्यवाही की बात तो छोडिये, प्रधानमंत्री के स्तर पर इस दिशा में कोई विचार तक नहीं किया गया था, कि यदि पाकिस्तान परमाणु हथियार संपन्न देश बन जाएगा तो वह भारत के लिए ही खतरा उत्पन्न करेगा।

उस हालात में भी भारत और विश्व शांति के लिए, इजराइल ने उस समय भारत से अनुरोध किया था कि भारत यदि स्वयं पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रमों के ठिकानों को नष्ट नहीं करता है, तो यह काम इजराइल स्वयं ही करने को तैयार है। इजराइल ने भारत से मात्र इतना अनुरोध किया था कि भारत उसके लड़ाकू विमानों के लिए अपना ‘एयर बेस’ थोड़े समय के लिए उपलब्ध करा दे, जिससे उसके युद्धक विमानों में ईधन इत्यादि भरा जा सके। इसके बाद इजराइल के सैनिक पाकिस्तान के उन स्थानों को स्वयं जाकर नष्ट कर देंगे, जहाँ परमाणु हथियारों को बनाने का कार्य चल रहा था।

परन्तु भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ‘मोरारजी देसाई’ ने न केवल इजराइल को भारत का ‘एयर बेस’ देने से मना कर दिया, बल्कि उन्होंने पाकिस्तान के उस समय के प्रधानमंत्री को, जो ‘मोरारजी’ के जिगरी दोस्त हुआ करते थे; उन्हें इस बात की तत्काल सूचना भी दे दी, कि इजराइल पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रमों को नष्ट करने की योजना बना रहा है।

‘मोरारजी’ ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को यह भी बता दिया था कि भारत के जासूस उनके परमाणु कार्यक्रमों के आसपास मौजूद हैं। ‘मोरारजी देसाई’ इस सूचना से पाकिस्तान ने हमारे सैकड़ों जासूसों को तत्काल खोज – खोज कर मरवा दिया।
  

ऐसे में ‘मोरारजी देसाई’ को भारत का एक अक्षम, अदूरदर्शी, अथवा संयोगवश बना प्रधानमंत्री माना जाए या फिर कुछ और; जो भारत के भविष्य के प्रति कतई गंभीर नहीं थे, और जाने – अनजाने पाकिस्तान की सीधे अथवा परोक्ष मदद भी कर रहे थे। उनके उस कृत्य से ‘भारत के अत्यंत महत्वपूर्ण खुफिया एजेंट्स’ की ह्त्या हुई; जिसका कारण उनका अपना प्रधानमंत्री ही था। भारत के वे सैकड़ों महान जासूस अपने राष्ट्र की सेवा के कर्तव्यों का पालन करते हुए बलिदान हो गये, परंतु मोरारजी देसाई ने इस परिपेक्ष में अपने कर्तव्यों का पालन कतई नही किया।

संभवतः ‘मोरारजी देसाई’ द्वारा पाकिस्तान को इजराइल, भारतीय खुफिया एजेंसियों और सेनाओं के खतरे से बचाने के लिए, साथ ही उसे अपने खतरनाक कार्य (परमाणु हथियारों को बनाने) में सहयोग के लिए ही, पाकिस्तानी सरकार ने उन्हें “निशान – ए – पाकिस्तान” नामक पुरस्कार से सम्मानित किया, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है।

हमारे देश के ऐसे ही अदूरदर्शी, स्वार्थी और अक्षम नेताओं के कारण ही पाकिस्तान परमाणु शक्ति संपन्न बन गया और वह अपने इन्हीं हथियारों के बल पर निरंतर भारत के विरुद्ध खुलकर कार्य करता रहता है। वह परमाणु हथियारों का भय भारत एवं विश्व के कई देशों को भी दिखाता है, कि किसी भी विपरीत परिस्थिति उत्पन्न होने पर वह अपने परमाणु हथियारों प्रयोग भारत के विरुद्ध तुरंत करेगा।
 

यह उसके परमाणु हथियारों की शक्ति ही थी, जिसके कारण ‘ओसामा बिन लादेन’ जैसे खूंखार आतंकवादी ने पूरे विश्व में मात्र पाकिस्तान को ही अपने लिए सबसे सुरक्षित देश के रूप में चुना, और वह वहीं कई वर्षों तक सुरक्षित रहता भी रहा।

वर्तमान में यह बात संतुष्टि देती है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने पुराने ढर्रे वाली कुछ गंभीर परम्पराओं को तोड़ा है, और अब भारत विभिन्न तकनीकी क्षेत्रों में, जिसमें रक्षा क्षेत्र भी शामिल है, उसमें आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रहा है। इसके साथ ही भारत अपने दुष्ट मानसिकता वाले पड़ोसी देशों के किसी भी हिमाकत का तत्काल माकूल जवाब देने में नहीं चूकता। हाल ही में “ऑपरेशन सिन्दूर” ने यह साबित कर दिया है कि भारत का वर्तमान नेतृत्व, देश की सुरक्षा के लिए पर्याप्त सक्षम भी है और कुशल भी।

भारत को इजराइल से अवश्य सीखना चाहिए, कि दुश्मनों से घिरा होने के बावजूद भी किस प्रकार से बिना डिगे हुए विकास की ऊँचाइयों को भी हासिल किया जा सकता है और अपनी सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकती है।







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