फारुख अब्दुल्ला द्वारा 'मानवता' शब्द का अपनी सुविधानुसार प्रयोग
".....‘फारुख अब्दुल्ला’ ने काश अपने पाकिस्तानी साथियों को तब भी ‘मानवता के धर्म’ के पालन की सलाह दी होती, जब पाकिस्तानी सरकार अपने देश में पिछले कई दशकों से बसे हुए ‘अफगानों’ को वापस उनके मूल देश अफगानिस्तान भेज रही थी ...."
एक समय भारत के जम्मू कश्मीर क्षेत्र में अलगाववाद के प्रखर पैरोकार और नेतृत्व कर्ता रहे जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ‘फारुख अब्दुल्ला’ ने हाल ही में एक बयान दिया है, जो उनके जहरीले विचारों की सच्चाई को उजागर करता है, अतः यहाँ उनके विचारों का विश्लेषण करना आवश्यक हो रहा है.
‘फारुख अब्दुल्ला’ को इस बात से बड़ी पीड़ा हुई है, कि ‘पहलगाम’ में हुए कट्टरपंथी आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों को उनके देश पाकिस्तान वापस भेजने का जो फैसला लिया है वह गलत है. उनके अनुसार भारत सरकार का यह फैसला ‘अमानवीय’ है.
उन्होंने बाकायदा अपने बयान में कहा है कि भारत में रह रहे पाकिस्तानियों की पहचान करके उन्हें भारत से बाहर निकलना ‘मानवता’ के विरुद्ध है. यदि अब्दुल्ला के पूर्व के कर्मों को देखा जाए तो यह आसानी से समझा जा सकता है कि यदि उनका बस चले तो वे भारत सरकार पर दबाव बनाकर पाकिस्तानियों के साथ – साथ भारत में अवैध रूप से रह रहे सभी बांग्लादेशियों व रोहिंगियाओं को आलीशान घर, बड़ी – बड़ी जमीनें, सरकारी नौकरियां और विभिन्न प्रकार के बीमा कवर दिलाकर उन्हें यहाँ हमेशा के लिए बसा दें.
वे भारत में पाकिस्तानियों को तब बसाना चाह रहे हैं, जब भारत विरोधी एजेंडा चलाने वाले वे, और उनके जैसे लोग, देश और दुनिया को यह बताते नहीं थकते, कि भारत में मुसलमान असुरक्षित हैं.

यदि इनकी इस बात को एक क्षण के लिए मान भी लिया जाए कि भारत में मुसलमान असुरक्षित हैं, तो वे और उनके बहुत से वैचारिक समर्थक पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार से अधिक से अधिक मुसलमानों को भारत में लाकर उन्हें क्यों असुरक्षा और मुसीबत में डालने का प्रयास कर रहे हैं ?
कायदे में तो उन्हें भारत में असुरक्षित महसूस करने वाले मुसलमानों को भारत से बाहर जाकर बसने का आग्रह करना चाहिए, साथ ही उन्हें अपने विदेशी मुसलमान साथियों को भी यह सुझाव देना चाहिए कि, चूंकि भारत मुसलमानों के लिए सुरक्षित देश नहीं है, इसलिए कृपया वे इस देश में तो कतई न आयें.
एक ओर तो ये और इनके जैसी सोच के लोग, भारत को मुसलमानों के लिए असुरक्षित बताते नहीं थकते, वहीं दूसरी ओर ये लोग बाकी के कुछ देशों से बड़ी संख्या में मुसलमानों को यहाँ आमंत्रित करके उन्हें बसाने में भी कोई कोर कसर भी नहीं छोड़ रहे हैं.
यह एक सामान्य सी स्थिति होती है, कि यदि कोई भी व्यक्ति, किसी स्थान पर असुरक्षित महसूस करता है तो वह उस स्थान से दूरी बनाने का प्रयास करता है. यदि उसके पास उससे बेहतर अवसर और संसाधन मौजूद हों तो वह उस स्थान पर तो कतई रहना पसंद नहीं कर सकता.
जो लोग भारत को मुसलमानों के लिए असुरक्षित देश बताते नहीं थकते, उनके लिए सुरक्षित विकल्प के तौर पर पहले ही दो देश धर्म के आधार पर भारत से कट कर बन चुके हैं – पाकिस्तान और बांग्लादेश; जहाँ मात्र मुस्लिम शासन है और वे देश मुस्लिम बाहुल्य भी हैं.
परन्तु यहाँ मामला मुसलमानों की असुरक्षा का तो कतई नहीं है.
यहाँ मामला है ‘फारुख’ जैसे लोगों की असलियत और इनकी चालों को समझने का है, जिसके तहत वे ऊपर से कुछ और प्रदर्शित करते हैं, लेकिन उनके भीतर कुछ और ही चल रहा होता है; जो भारत के लिए अथवा किसी भी सभ्य समाज के लिए खतरनाक ही है.
ऐसे लोग ‘मानवता’ और ‘भाईचारे’ नाम के शब्दों का इस्तेमाल मात्र साधारण लोगों को भ्रमित करने के उद्देश्य से समय – समय पर अपनी सुविधा के अनुसार करते रहते हैं.
उनका और उनके समान विचारधारा के लोगों का दर्द तो बहुत गहरा है, और वे बड़े गहरे सदमें में भी हैं; क्योंकि उन्हें यह पक्का पता है कि भारत जल्द ही उनके परम प्रिय पाकिस्तान के साथ बहुत बुरा करने वाला है, जिसकी शुरुआत भी भारत सरकार द्वारा की जा चुकी है.
इस कारण उनकी हताशा, निराशा और हृदय की पीड़ा उनके बयानों के द्वारा परिलक्षित भी होने लग गई है. यह उसी प्रकार से है, जैसा कुछ दिनों पूर्व महबूबा मुफ़्ती के साथ हुआ था; जब वे हमास को लेकर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कर रही थीं और बेतुकी दलीलें दे रही थीं.
ऐसे राजनेताओं के क्रियाकलापों से इनके विचारों और कृत्यों में विरोधाभास स्पष्ट रूप से दिखाई देता है.
इसका एक तरोताजा उदाहरण है ‘CAA’ (नागरिकता संशोधन अधिनियम / कानून) का विरोध.
CAA के द्वारा यह प्रावधान किया गया है, कि भारत के आसपास के कुछ ऐसे देशों के उन “गैर मुस्लिम” नागरिकों को भारत की नागरिकता दी जा सकती है, जो उन देशों में धार्मिक आधार प्रताड़ित हो रहे हैं, और वे वहां अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.
CAA कानून के विरुद्ध इन जैसे विचारधारा के राजनेताओं की एक बड़ी विच्रित्र दलील यह थी, कि भारत की जनसंख्या वैसे ही बहुत अधिक है, जिसके कारण भारत के संसाधनों पर पहले से ही बड़ा दबाव है. ऐसे में यदि भारत, बाहरी देशों से और भी लोगों को अपने यहाँ की नागरिकता देता है, तो भारत के संसाधनों पर और बोझ बढ़ेगा, जिससे यहाँ पर पहले से निवास करने वाले नागरिकों के हित नकारात्मक रूप से प्रभावित होंगे. चूंकि उन ‘चंद लोगों’ के यहाँ आ जाने से भारत के मौजूदा संसाधनों का उनमें भी बंटवारा होगा, इस कारण भारत के वर्तमान निवासियों के लिए संसाधनों की और भी कमी हो सकती है.
परन्तु आज वे लोग भारत में रह रहे करोड़ों पाकिस्तानियों, बांग्लादेशियों और रोहिंगियाओं (जो हमारे दुश्मन देश के नागरिक हैं और भारत एवं इसकी संस्कृति के विरोध से भरे हुए हैं) को बाहर करके उनके मूल देश भेजने का विरोध कर रहे हैं. और इस बार उनकी दलील यह है, कि यह ‘मानवता’ के विरुद्ध है.
ऐसे लोगों के अनुसार भारत को ‘मानवता’ दिखाते हुए इन जहरीले लोगों को यहाँ बसाना चाहिए. इन लोगों के अनुसार इन दुश्मन देश के जहरीले नागरिकों द्वारा भारत के संसाधनों पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ ही नहीं सकता.
कुल मिलाकर ये अपनी दलीलों के आधार पर यह सिद्ध करना चाहते हैं, कि भारत के संसाधनों पर विपरीत प्रभाव मात्र विदेशी “गैर मुस्लिमों” के आने से ही पड़ सकता है; न कि यहाँ अवैध रूप से रह रहे पाकिस्तानियों, बांग्लादेशियों और रोहिंगियाओं के रहने से.
यदि ‘मानवता’ की ही बात की जाए, तो पाकिस्तानियों और भारत में रहने वाले भारत विरोधी लोगों को चाहिए कि वे क्रमशः अपने नागरिकों और सहयोगियों को स्वयं के प्रयासों से भारत से वापस अपने मूल देश यथाशीघ्र पहुँचने और पहुंचाने में मदद करें. क्योंकि वे उन्हीं के नागरिक हैं अथवा उनके प्रति उनकी अटूट श्रद्धा है.
परन्तु ऐसा कुछ नहीं हो रहा है. जो पाकिस्तान, भारत के खिलाफ पूरी दुनिया को यह बताने का प्रयास करता रहता है कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नहीं है, भारत में मुसलमानों के ऊपर जुर्म हो रहा है, आखिर वह इतना गैर जिम्मेदार कैसे हो सकता है, कि वह अपने देश के मुस्लिम नागरिकों को भारत में बसाने का पूरा प्रयास भी कर रहा है, जहाँ उनके अनुसार वे बहुत असुरक्षित हैं. आखिर कोई देश अपने नागरिकों को ऐसे किसी देश में कैसे बसाने का प्रयास कर सकता है, जो उसके नागरिकों के लिए असुरक्षित हो.
ऐसे में ‘मानवता’ की तिलांजलि तो पाकिस्तान और पाकिस्तान परस्त लोग ही दे रहे हैं, कि वे अपने देश के मुस्लिमों को एक ऐसे देशों में भेजने को आतुर रहते हैं जिसे वे उनके लिए सुरक्षित नहीं बताते.
जो लोग अपने देशों में मात्र धार्मिक आधार पर प्रताड़ित हैं यदि उन्हें भारत सरकार अपने देश की नागरिकता दे देती है तो क्या यह मानवता नहीं है ? और यह मानवता के विरुद्ध कैसे हो सकता है कि जो भारत विरोधी एजेंडे के तहत भारत में आकर निवास कर रहे हैं, उन्हें अपने देश से बाहर किया जाए, जिनकी संख्या करोड़ों में है.
यदि इनकी पहली दलील जोकि भारत के संसाधनों पर दबाव से सम्बंधित है, उसपर बात की जाए, तो जो करोड़ों की संख्या में भारत में अवैध रूप से पाकिस्तानी, बांग्लादेशी अथवा रोहिंगिया भारत में निवास कर रहे हैं, जिन्हें पिछले कुछ दशकों से भारत में बसाने का कार्य बड़े सुनियोजित ढंग से किया जा रहा है, क्या वे लोग भारत के संसाधनों का उपयोग और दोहन नहीं कर रहे हैं? क्या उनके द्वारा भारतीय संसाधनों के उपयोग से भारत के अन्य नागरिकों के हिस्से के संसाधनों पर बोझ नहीं बढ़ता? या फिर वे यहाँ के अन्य वैध नागरिकों का हक़ नहीं मार रहे हैं और क्या वे भारत के संसाधनों को किसी खतरनाक परजीवी की भांति नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं ?
फारुख जैसी सोच वाले और संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ से ग्रसित लोगों के अनुसार “गैर मुस्लिम” यदि भारत में आकर बसते हैं, तो वे भारत के संसाधनों पर बोझ बनेंगे; लेकिन यदि इनके विदेशी मुसलमान साथी (जो उनके संभावित समर्थक और वोटर हो सकते हैं) जो भारत अवैध रूप से आकर बसे हुए हैं, वे भारत के संसाधनों को समृद्ध करने में अपना योगदान दे रहे हैं और भारत की उन्नति में अपना सक्रिय व महत्वपूर्ण योगदान भी ददे रहे हैं.
शायद इनके ये पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और रोहिंगिया मुसलमान साथी अपने देशों का पूरा भला कर चुके हैं, और वहां शांति तथा समृधि स्थापित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के बाद, अब वे भारत में शांति और समृद्धि की स्थापना में अपना योगदान देने को आतुर हैं. वे भारतीय समाज की सेवा के उद्देश्य से ही यहाँ आकर बसे हैं और भविष्य में भी इनके जैसे सामाजिक कार्यकर्ता, उन देशों से भारत में आने का निरंतर प्रयास करते रहेंगे.
वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यामांर (रोहिंगिया) देशों से अवैध रूप से भारत में आये और बसे हुए मुसलमान, सामान्यतः भारत में रचनात्मक कार्य नहीं कर रहे हैं. बल्कि ये भारत को अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाने और यहाँ के सामाजिक ताने बाने को नष्ट करने के अपने प्राथमिक उद्देश्य की पूर्ति में ही बड़ी तन्मयता से लगे हुए हैं.
भारत के विभिन्न हिस्सों में अराजकता फैलाना ही इनकी यहाँ की सबसे बड़ी उपलब्धि और पहचान भी है.
जहाँ तक ‘मानवता’ का प्रश्न है, तो ‘फारुख अब्दुल्ला’ और उनके विचारों से सहमति जताने वाले लोगों को चाहिए, कि वे ‘मानवता’ नाम के अस्त्र वाली अपनी ये ‘बकवास दलील’ पाकिस्तान को दें, कि पाकिस्तान स्वयं से कम से कम इतनी तो ‘मानवता’ दिखाए, कि वह अपने ही नागरिकों को अपने यहाँ अपने स्वतः के प्रयासों बुला ले, यदि वह ज़रा जिम्मेदार और अपने नागरिकों के लिए संवेदनशील देश है तो.
परन्तु मीडिया की कई रिपोर्ट्स तो यही दिखा और बता रही हैं कि जो पाकिस्तानी नागरिक, भारत से पाकिस्तान वापस भेजे जा रहे हैं, पाकिस्तान उन्हें अपने देश में लेने में आनाकानी कर रहा है; और उसके अपने ही नागरिक जो भारत से वापस पाकिस्तान भेजे जा रहे हैं, वे कई – कई दिनों से अपने देश पाकिस्तान के बॉर्डर के अंदर जाने में भी संघर्ष का सामना कर रहे हैं.
यह तो पाकिस्तान की ‘अमानवीयता’ और अपने ही देश के नागरिकों के प्रति उदासीनता, असंवेदनशीलता और गैर जिम्मेदाराना रवैये का स्पष्ट परिचायक है, कि वह अपने ही लोगों को अपनाने को तैयार नहीं है.
अपने ही देश के लोगों को अपने देश में न लेना, पाकिस्तान और भारत में रह रहे पाकिस्तानी मददगारों और उनके समर्थकों की एक और चाल की ओर इशारा है, कि पाकिस्तान जानबूझकर अपने नागरिकों को भारत में भेजकर उन्हें अंडरग्राउंड और अपर ग्राउंड स्लीपर सेल के रूप में बसाना चाहता है, जिससे उसके ये नागरिक, पाकिस्तान के किसी भी भारत विरोधी अभियान में, भारत के भीतर से ही सक्रिय होकर भारत को नुकसान पहुंचाएं और पाकिस्तान की मदद करें.
यहाँ ‘फारूख अब्दुल्ला’ को कायदे में अपने परम मित्र, हितैषी और दिल के सबसे करीबी पाकिस्तानी हुक्मरानों को यह सुझाव देना चाहिए, कि कम से कम वे ‘मानवीय मूल्यों’, संवेदनाओं और अपने नागरिकों के प्रति अपनी जवाबदेही को निभाने के लिए आगे आयें, और अपने देश के नागरिकों को अपने देश में वापस लें, साथ ही अपने साथी देश बांग्लादेश के नागरिकों को भी अपने देश में शरण दे और अपनी नागरिकता भी दे.
‘फारुख अब्दुल्ला’ ने काश अपने पाकिस्तानी साथियों को तब भी ‘मानवता के धर्म’ के पालन की सलाह दी होती, जब पाकिस्तानी सरकार अपने देश में पिछले कई दशकों से बसे हुए ‘अफगानों’ को उनके मूल देश अफगानिस्तान भेज रही थी, जिनकी संख्या कई लाखों में थी (लगभग 10 लाख वापस अफगानिस्तान भेजे जा चुके हैं).
खैर फारूख, महबूबा और इन जैसों के विचारों से सहमत लोग वास्तव में पूरे भारतीय समाज और देश को पुनः गुलामी की जंजीरों में जकड़ना चाहते है.
कश्मीर के ‘पहलगाम’ में हुए आतंकी हमलों में मारे गये लोगों के परिवारजनों के प्रति ‘फारुख’ और इनके विचारों से सहमत राजनेताओं तथा लोगों ने जो अपनी संवेदनाएं दिखाने का प्रयास किया है, वह एक ढकोसला ही दिखता है; क्योंकि इनके ऐसे कार्य इनके विचारों और कृत्यों के इतिहास से मेल नहीं खाते.
इनकी ये संवेदनाएं पीड़ितों के साथ मात्र दिखावे भर के लिए सीमित लगती हैं, जिसका एक निहित स्वार्थ यह भी प्रतीत होता है कि उस हमले के प्रभाव से कहीं कश्मीर के इनके साथियों के टूरिस्म पर आधारित व्यवसाय पर बुरा प्रभाव न पड़ने पाए. ये अपने साथी कश्मीरियों के रोजगार को सुरक्षित करने के उद्देश्य से ही हमले के पीड़ितों के प्रति आज अपनी संवेदनाएं व्यक्त कर रहे हों, इससे इनकार नहीं किया जा सकता.
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Rightly said...
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