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पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ से उत्पन्न खीर

                  पुत्र प्राप्ति हेतु यज्ञ से उत्पन्न खीर 

 अयोध्या के महाराजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति हेतु सृंगी मुनि के द्वारा एक यज्ञ कराया, उस यज्ञ से अग्निदेव प्रकट हुए, और उन्होंने एक औषधि युक्त दिव्यखीर, महाराज दशरथ को प्रदान की, अग्निदेव ने राजा दशरथ से कहा, कि वे इस खीर को अपनी तीनों महारानियों को खिलाएं, जिससे उन्हें पुत्रों की प्राप्ति होगी.

अब बात करते हैं खीर की. क्या खीर खाने से पुत्र उत्पन्न हो सकते हैं ?

    पहले हम यज्ञ के अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं, भगवान श्री कृष्ण ने गीता में यज्ञ के बारे में बताया है, उन्होंने कई प्रकार के यज्ञों का वर्णन भी किया है, जिसमें ज्ञान यज्ञ, भक्ति यज्ञ इत्यादि प्रमुख हैं, यज्ञ का मुख्य अर्थ है किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले समर्पित प्रयास. प्रयास, शोध के भी होते हैं, जिससे विभिन्न प्रकार केविष्कार किये जाते हैं

यज्ञ शब्द के इस्तेमाल को महाराज गरुण द्वारा नीचे जोड़े गए वीडियो में भी सुनिए - यह तब का संवाद है जब भगवान् श्री राम भाई लक्ष्मण जी के साथ नागपाश में बंधे थे और महराज गरुण उन्हें उन नागों से मुक्त करने आये थे यहाँ उन्होंने युद्ध यज्ञ  शब्द का प्रयोग किया है :- 

    एक खिलाड़ी भी, यदि किसी बड़ी खेल प्रतियोगिता हेतु, अपने भौतिक सुखों को त्यागकर, कठिन परिश्रम करता है, तो वह भी एक यज्ञ कर रहा होता है. यदि वह खिलाड़ी, बड़ी प्रतियोगिता में हिस्सा लेता है, और उसमें सफल भी हो जाता है, तो इसका अर्थ है, कि उसका यज्ञ सफल हुआ. यदि वह खिलाड़ी, सफल नहीं हुआ, तो इसका अर्थ है, उसका यज्ञ, सफल नहीं रहा

    ठीक ऐसे ही, हम सभी ने श्री रामानंदसागर द्वारा बनाई गई, रामायण को देखा है, उसमें रावण, यज्ञ करके विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्र उत्पन्न करता है. मेघनाथ भी लक्ष्मणजी से अंतिम युद्ध करने जाने से पहले, कोई बड़ा अस्त्र का निर्माण करने के लिए माँ निकुम्भ्ला देवी के मंदिर में यज्ञ करता है, लेकिन उसे वानर सेना द्वारा असफल कर दिया जाता है. इसका अर्थ है कि उसे उसका कार्य / शोध करने नहीं दिया गया, नहीं तो वह बेहद घातक अस्त्र विकसित करने में सफल हो जाता. मेघनाथ द्वारा किये जाने वाले उस यज्ञ का अर्थ यह नहीं था, कि वह, अग्नि जलाकर पूजा पाठ करके अस्त्र शस्त्रों को प्रकट करेगा. निकुम्भ्ला देवी के मंदिर में ही उसकी प्रयोगशाला थी, जहाँ पर वो शोध करके बड़े - बड़े घातक अस्त्र - शस्त्रों का निर्माण करता था. यह ठीक ऐसे ही है, जैसे आज के वैज्ञानिक, नई - नई मिसाईलों, बमों इत्यादि का निर्माण विभिन्न प्रकार की प्रयोगशालाओं में करते हैं. घातक परमाणु बम एवं हाइड्रोजन बमों इत्यादि का निर्माण वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में ही किया जाता है. क्या ये सारे काम हम और आप कर सकते हैं? नहीं, क्यूंकि ऐसा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, उनसे संबंधित विषयों के ज्ञान हेतु पढ़ाई करनी होती है फिर से संस्थानों में जाना होता है जहाँ इसके लिए उपयुक्त संसाधन उपलब्ध होते हैं जहाँ से आवश्यक अनुभव प्राप्त कर आगे अधिक विकसित / उन्नत (advance) शोध करके अत्याधुनिक एवं उन्नत किस्म के अस्त्र - शस्त्रों, उत्पादों इत्यादि का निर्माण किया जाता है.

    ठीक इसी प्रकार से, विभिन्न प्रकार के नए - नए एवं उन्नत उत्पादों एवं तकनीकी के विकास के लिए पूर्ण समर्पण एवं फोकस के साथ कार्य करना होता है तब जाकर किसी परिणाम की अपेक्षा की जाती है. जिन वैज्ञानिकों को वाकई में कोई नया आविष्कार करना होता है उन्हें कुछ वर्षों के लिए अपने भौतिक सुखों का त्याग भी करना पड़ता है तब जाकर वैज्ञानिक नई - नई तकनीकी एवं उत्पाद  इत्यादि विकसित कर पाते हैं

    इसप्रकार के सभी कार्य, सनातन धर्म में यज्ञ कहलाते हैं. 

    इसीप्रकार से पुत्र प्राप्ति हेतु महाराज दशरथ द्वारा किया गया यज्ञ, किसी ऐसी प्रभावी औषधि को बनाने का ही कोई शोध कार्य / कार्य था, जो महिलाओं को गर्भ धारण करने में सहायक हो और वह यज्ञ / शोध अथवा कार्य, सफल भी रहा. जिस प्रकार से आजकल जिन महिलाओं को गर्भ धारण करने में समस्या होती है उनका इलाज उस क्षेत्र के माहिर / विशेषग्य डॉक्टरों द्वारा किया जाता है जिसमें से अधिकतर महिलाएं गर्भ धारण की क्षमता विकसित कर पाती हैं और उन्हें माता बनने का सौभाग्य प्राप्त होता है, उसी प्रकार से उस काल में भी कुछ विशेषग्य थे. आजकल टेस्ट ट्यूब बेबी भी बड़ी संख्या में जन्मते हैं एवं टेस्ट ट्यूब बेबी केंद्र एवं इस विधा में विशेषग्य चिकित्सक कम ही होते हैं. यह कार्य हर चिकिसक नहीं कर सकता. इस प्रकार के कार्य में विधा (विशेषज्ञता) के साथ - साथ विभिन्न प्रकार के संसाधनों की भी आवश्यकता पड़ती है जो हर चिकत्सक के अस्पतालों में उपलब्ध नहीं होते, इसकारण मात्र कुछ ही चिकित्सक इस कार्य को सफलता पूर्वक कर पाते हैं. ठीक इसी प्रकार से उन दिनों सृंगी मुनि भी गर्भ से जुड़े मामलों के विशेषग्य चिकित्सक थे जिनके द्वारा ऐसी औषधि को बनाया गया जिससे महाराजा दशरथ की तीनों रानियाँ गर्भ धारण कर पाएं.

आज से लगभग 3000 वर्ष पूर्व इसी भारत की ही धरती पर सुश्रुतधन्वन्तरी, जीवक इत्यादि जैसे महान चिकित्सक रहे थेतब पूरे विश्व में तकनीकी का विकास आज की तरह नहीं था. जीवक ने तो भगवान् बुद्ध के मस्तिष्क की सर्जरी भी की थी. इस कारण से यह मान लेना कि भारत में आज की तरह कोई विकसित विज्ञान था ही नहीं यह तथ्य हीन बात है.

भगवान् श्री राम के समय की तकनीकी के विकास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भगवान् श्री राम और उनकी सेना ने समुद्र पर पुल बाँध दिया. तकनीकी के उन्होंने यह भी पता कर लिया था कि समुद्र कहाँ से छिछला है. राम सेतु जब बना था उस काल में एवं उससे पूर्व इतनी विकसित मानव निर्मित रचना पूरे विश्व में कहीं नहीं थी. 

इसी प्रकार से सृंगी मुनि ने भी ऐसी औषधि का निर्माण किया था जिससे महिलों को गर्भ धारण में आसानी हो. उस औषधि को खीर के साथ इसलिए दिया गया होगा क्यूंकि वह औषधि मीठे के साथ अधिक प्रभावी होती होगी अथवा यह भी हो सकता है कि वह दवा बेहद कडुवी हो जिसे मीठे में मिलाकर दिया जाता हो. जैसे आज डॉक्टर कुछ दवाओं को खाने के लिए सुझाव देते हैं कि फलां दवा कुछ खाने के बाद ही खाना एवं कुछ दवाओं को खाली पेट खाने के भी सुझाव चिकित्सकों द्वारा दिए जाते हैं. 

        आज बाजार में उपलब्ध समस्त प्रभावी  दवाएं / औषधियां विभिन्न प्रकार के शोध कार्यों से ही बनाई जाती हैं और इन्ही शोध कार्यों को हम सनातन की पारंपरिक भाषा में "यज्ञ" कहते हैं.

जै श्री राम 




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