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अपने दुश्मनों से निपटने में इजराइल व भारत का नजरिया – इतिहास और वर्तमान के चंद उदाहरण

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"रूस - युक्रेन" युद्ध से पश्चिमी देशों की पोल खुल गई

अमेरिका में ‘डोनाल्ड ट्रंप’ के पुनः सत्ता में वापसी के कुछ दिनों बाद ही युक्रेन के राष्ट्रपति ‘जेलेंस्की’, ‘डोनाल्ड ट्रंप’ से मिलने अमेरिका गए. ‘डोनाल्ड ट्रंप’ और अमेरिका के उप राष्ट्रपति ‘वेंस’ से मुलाक़ात के दौरान उन्होंने सड़क उनसे छाप अंदाज में बातें की, और उस बातचीत के दौरान उन्होंने अमेरिकी उप राष्ट्रपति ‘वेंस’ पर बेवजह ऊंचा बोलने का आरोप लगा दिया; वह मात्र इसलिए कि ‘जेलेंस्की’ चाहते थे कि वे जो भी कह रहे हैं, उसे ही सही माना जाए. ‘वेंस’ पर ऊंचा बोलने का आरोप लगाते ही ‘डोनाल्ड ट्रंप’ ने ‘जेलेंस्की’ को तुरंत आड़े हाथों लिया, और उन्होंने जेलेंस्की को बहुत कुछ खरा - खरा सुना दिया.   ‘डोनाल्ड ट्रंप’ ने ‘जेलेंस्की’ को जो कुछ भी सुनाया, वह 100 प्रतिशत व्यावहारिक सत्य था.  ‘डोनाल्ड ट्रंप’ ने यूक्रेनी राष्ट्रपति ‘जेलेंस्की’ से कहा, कि एक तो अमेरिका के पूर्व के “मूर्ख राष्ट्रपति” (जो बाईडेन) की मदद से आप हमारे हथियारों और पैसे से युद्ध लड़ रहे हो, और आज हमें आँखें भी दिखा रहे हो. 'ट्रम्प' ने बेबाक अंदाज में आगे कहा, कि तुम्हारी वजह से ‘युक्रेन’ आज बर्बाद हो रहा है, वहां के शहर नष्ट ...

पाकिस्तान को हथियार मुक्त करने का समय

             यह समय की मांग है कि अब पाकिस्तान को हथियारों से मुक्त देश बनाकर छोड़ा जाए.    पाकिस्तान सरकार द्वारा पोषित आतंकवाद के विरुद्ध जब भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान की धरती को अपने पराक्रम से हिला दिया *  तो पाकिस्तान घुटनों पर आ गया. पाकिस्तान के गिडगिडाने पर भारत ने क्षणिक रूप से युद्ध विराम तो स्वीकार कर लिया, परन्तु इस युद्ध विराम के बाद पाकिस्तान में जो कुछ हुआ उसे देखकर तो यही लगता है कि पाकिस्तानी सेना और उसकी कठपुतली सरकार, कुत्ते की दुम की भातीं है, जिसे सीधा नहीं किया जा सकता. युद्ध विराम की घोषणा के बाद पाकिस्तानी सेना और उसकी सरकार ने जश्न मनाया. सीज फायर की घोषणा को पाकिस्तान अपनी जीत के रूप में प्रस्तुत कर रहा है. आखिर ये कैसे लोग हैं, जो जान की भीख मिलने को अपनी जीत बता कर उत्सव मना रहे हैं. युद्ध विराम के बाद उत्सव मनाना, यह प्रदर्शित करता है कि उनके मन में "मोहम्मद गोरी" की भांति ही विचार चल रहा है, कि इस बार हारने के बाद कम से जान तो बची; अब आगे फिर मजबूत होकर भारत पर कब्जा करने के अपने एजेंडे पर आगे बढें...

"पाकिस्तान और मोहम्मद गोरी" के कृत्यों में समानता - भारत को यह सुअवसर खोना नहीं चाहिये

............भारत विभाजन के बाद से ही हम पाकिस्तान के लगभग हर वार का मात्र तात्कालिक जवाब देकर उसे हर बार छोड़ दिया करते हैं; लेकिन वह अपनी हरकतों पर विराम लगाने को तैयार नहीं है. यह वैसा ही है जैसा मोहम्मद गोरी लगातार पृथ्वीराज चौहान पर हमले करता रहता था, और हर बार पृथ्वीराज चौहान उसे भाग जाने देते थे. परन्तु इसका अंत में क्या परिणाम हुआ यह सभी को पता है.  यदि पृथ्वीराज चौहान, मोहम्मद गोरी के दूसरे हमले पर ही उसका अंत कर दिए होते तो भारत का इतिहास कुछ और ही होता. इसलिए यदि पाकिस्तान को अभी नहीं रोक दिया गया तो भविष्य में भारत को भी पृथ्वीराज जैसा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है; क्योंकि पाकिस्तान मो0 गोरी की भांति भारत पर निरंतर हमले जारी रख रहा है ......

"ऑपरेशन सिन्दूर" की सफलता हेतु मोदी जी और भारत की सुरक्षा में लगे हुए सभी राष्ट्रभक्तों को धन्यवाद

...आज की सैन्य कार्यवाही से भारत ने पाकिस्तान की रक्षा मजबूती का आकलन तो कर ही लिया, परन्तु भारत को इतिहास से सबक लेते हुए यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे शत्रु को बार – बार हरा कर छोड़ देना उचित नहीं होगा; जैसा कि पृथ्वी राज चौहान ने मोहम्मद गोरी के साथ किया था. इसकारण पाकिस्तान को इस हालत में पहुंचा दिया जाए कि उसकी आने वाली कई -कई पीढियां भी कभी भारत के बारे में बुरा सोचने तक की हिम्मत न कर सके...  

फारुख अब्दुल्ला द्वारा 'मानवता' शब्द का अपनी सुविधानुसार प्रयोग

".....‘फारुख अब्दुल्ला’ ने काश अपने पाकिस्तानी साथियों को तब भी ‘मानवता के धर्म’ के पालन की सलाह दी होती, जब पाकिस्तानी सरकार अपने देश में पिछले कई दशकों से बसे हुए ‘अफगानों’ को वापस उनके मूल देश अफगानिस्तान भेज रही थी ...."

महबूबा मुफ़्ती का 'हमास' प्रेम

                                                    “महबूबा मुफ़्ती” ने ‘अमेरिका’ के ‘लास एन्जलेस’ में, जंगल की आग से हो रहे बड़े पैमाने पर संपत्ति के नुकसान के बहाने, गाजा का मुद्दा उठाया है. “महबूबा मुफ़्ती” के मुताबिक़ ‘गाजा’ में, ‘इजराइल’ की ओर से की जा रही सैन्य कार्यवाही से हो रहे जान माल के नुकसान के पीछे ‘इजराइल’ दोषी है. खैर “महबूबा मुफ़्ती” जैसे लोगों से इसी प्रकार के बयानों की अपेक्षा है. वे भारत के अधिकतर लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने में कभी कोई चूक नहीं करती हैं. उनके ईमानदारी की दाद देनी पड़ेगी, कि वे कभी भी लोगों के बीच भ्रम उत्पन्न करने की कोई गलती नहीं करतीं; जिससे कि लोग किसी क्षण यह महसूस करने लग जायें कि “महबूबा मुफ़्ती” में कोई आत्म परिवर्तन होने लगा है.   “महबूबा” ने कभी भी ‘हमास’ को यह सुझाव देने की जहमत नहीं उठाई, कि वह ‘इजराइल’ के ‘बंधक नागरिकों’ को अपने चंगुल से छोड़ दे; जिससे इजराइल द्वारा की जाने वाली सैन्य कार्यवाही को रोकने का को...